नई दिल्ली
क्या प्रमुख दलों को एक प्लैटफॉर्म पर लाकर विपक्ष 2024 के अगले लोकसभा चुनावों में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को पछाड़ सकता है? क्या मोदी लहर पर सवार भाजपा अगले चुनावों में विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A की एकजुटता को भी ध्वस्त कर देगी? एक तरफ विरोधी दल पिछले चुनावों में बीजेपी विरोधी वोटों को जोड़कर जीत की उम्मीद लगाए बैठे हैं तो दूसरी तरफ भाजपा को उम्मीद है कि मतदाता फिर से उसका ही साथ देंगे। इस बीच चुनावी पंडितों की मिली-जुली राय सामने आती रहती है। अक्सर कहा जाता है कि चुनावी गणित दो जमा दो बरारब चार के मान्य सूत्र पर नहीं चलता है। इसका समीकरण कब, किस आधार पर बदल जाए, कहना मुश्किल है। यानी कोई जरूरी नहीं कि पार्टियों का गठबंधन बन जाने से उनके सारे वोट जुड़ ही जाएं और जुड़ भी जाएं तो वो सीटों में कन्वर्ट हो जाएं।
मिजोरम के आंकड़े हैरान कर रहे
यूं तो विश्लेषणकर्ता अतीत के चुनावों से इसके उदाहरण देते ही रहते हैं, लेकिन बीते 3 दिसंबर को पांच राज्यों के आए चुनाव परिणामों से भी अतरंगी चुनावी समीकरणों की साफ-साफ समझ हो जाती है। सबसे दिलचस्प आंकड़े आए मिजोरम से, जहां कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी के मुकाबले तीन गुना से भी ज्यादा वोट पाकर भी उससे आधी सीट ही जीत पाई। वहां कांग्रेस को 20.82% वोट और सिर्फ एक सीट मिली जबकि बीजेपी ने महज 5.06% वोट पाकर दो सीटों पर कब्जा कर लिया। चुनावों में दो जमा दो बराबर चार का गणित नहीं चलता, इसके उदाहरण बाकी राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में भी देखने को मिले। आइए एक नजर डालते हैं…
चुनावों में मैथ्स नहीं, कैमिस्ट्री का काम
पिछली बार 2018 में मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में भी ऐसे ही हैरतअंगेज आंकड़े मिले थे। तब बीजेपी को कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले थे, लेकिन सीटें कम। बीजेपी ने तब 41% वोट हासिल किए थे जबकि कांग्रेस ने 40.9% लेकिन कांग्रेस के खाते में 114 सीटें गई थीं और बीजेपी 109 पर सिमट गई थी। यानी यह बात तो सही है कि चुनावों में मैथ्स नहीं, केमिस्ट्री काम आती है।