How mobile addiction affecting children and ways to keep them away from mobile and online gaming: digi desk/BHN/नई दिल्ली/अप्रैल का महीना खत्म होने को है और अगले महीने से ज्यादातर स्कूलों में गर्मी की छुट्टियां शुरु हो जाएंगी। इसके साथ ही बच्चों के पास सारा दिन होगा और करने को कुछ नहीं। ऐसे में ज्यादातर बच्चे या तो टीवी देखकर समय काटेंगे या मोबाइल-लैपटॉप पर ऑनलाइन वीडियो देखकर या online game खेल कर छुट्टियां बिताएंगे। लेकिन ये बच्चों की शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए बहुत ही नुकसानदेह साबित हो सकता है। ऐसे में पैरेन्ट्स के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये होगी कि बच्चों को बोर होने से कैसे बचाएं और कैसे उन्हें मोबाइल-टीवी आदि में घुसे रहने से रोकें। चलिए विस्तार से जानते हैं कि ये समस्या कितनी गंभीर है और इसके लिए क्या कदम उठाना चाहिए।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
WHO द्वारा जारी गाइडलाइन्स के अनुसार, एक से डेढ़ साल से कम उम्र के बच्चों को दिनभर में बिल्कुल भी टीवी या मोबाइल स्क्रीन पर वक्त नहीं बिताना चाहिए। 2 से 5 साल के बच्चे ही दिन में 1 घंटा टीवी या मोबाइल की स्क्रीन देख सकते हैं। लेकिन एक दिन में 1 घंटे से ज्यादा स्क्रीन पर वक्त बिताने उनकी सेहत पर नकारात्मक असर पड़ता है। मनोचिकित्सकों के मुताबिक ज्यादा मोबाइल यूज करने से बच्चों में डिप्रेशन, अनिद्रा व चिड़चिड़ापन जैसी मानसिक समस्याएं बढ़ रही हैं। इसकेअलावा सिर दर्द, भूख न लगना, आंखों की रोशनी कम होना, आंखों में दर्द, आदि समस्याएं भी सामने आ रही हैं।
क्या है नुकसान
मोटापा
टीवी मोबाइल की वजह से बच्चों की निष्क्रियता बढ़ती है। वहीं स्क्रीन टाइम के दौरान खाने की आदत से वजन बढ़ने की संभावना और बढ़ जाती है। बाद में मोटापे की वजह से सेहत संबंधी दूसरी समस्याएं खड़ी होने लगती हैं।
आंखों की समस्या
ज्यादातर बच्चे टीवी या मोबाइल स्क्रीन में इतने खो जाते हैं कि पलकें झपकाना तक भूल जाते हैं। इस वजह से उनकी आंखों को अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है। लंबे समय तक स्क्रीन समय से डिजिटल आई स्ट्रेन, जलन, धुंधलापन और कम दिखाई देने की समस्या खड़ी हो सकती है।
नींद में कमी
लंबे समय तक स्क्रीन के संपर्क में रहने से बच्चों की नींद का पैटर्न बिगड़ जाता है। इसका असर उनके शारीरिक और मानसिक ग्रोथ पर पड़ता है। नींद की कमी से पीड़ित बच्चों से स्वभाव में भी बदलाव आता है और वो चिड़चिड़े हो जाते हैं।
मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव
जो बच्चे ज्यादा समय स्क्रीन के सामने बिताते हैं, उनमें सामाजिक संपर्क कौशल की कमी होती है। उनमें बातचीत का कौशल, अशाब्दिक संकेतों को पहचानना और सामाजिक व्यवहार को समझना जैसी क्षमताएं विकसित नहीं हो पातीं। कुछ बच्चों में हिंसक और आक्रामर प्रवृत्ति भी विकसित हो जाती है। कुछ मामलों में असंतुष्टि के भाव में वृद्धि भी पाई गई है। ये बच्चे अपनी ड्रेस, स्टेटस, खिलौनों आदि से कभी संतुष्ट नहीं होते और बहुत ही डिमांडिंग और आत्मकेन्द्रित हो जाते हैं।
क्या करें उपाय
खुद को सुधारें
बच्चे अपने आसपास के माहौल से ही सीखते हैं। अगर पैरेन्ट्स हमेशा मोबाइल-लैपटॉप में घुसे रहेंगे, तो बच्चों को कभी रोक नहीं पाएंगे। कोशिश करें कि बच्चों के सामने मोबाइल का इस्तेमाल कम से कम करें।
बच्चों को दें समय
बच्चे जितनी जल्दी आदत पकड़ते हैं, उतनी ही जल्दी छोड़ भी सकते हैं। अगर आप उनके साथ ज्यादा समय बिताएंगे, तो मोबाइल-टीवी का आदत अपने-आप छूट जाएगी। गर्मियों में रोजाना बच्चों को पार्क में ले जाएं, उनके साथ खेलें और समय बिताएं।
किताबों में जगाएं रुचि
बच्चों को कॉमिक्स या कहानी की किताबें पढ़ने के लिए प्रेरित करें। अगर इनके प्रति रुचि पैदा हो गई, तो उनका स्क्रीन टाइम कम हो जाएगा और वो किताबों के इर्द-गिर्द कल्पना की नई दुनिया गढ़ लेंगे। उनसे कहानी सुनें और उन्हें कहानियां सुनाएं। इससे मस्तिष्क उर्वर होता है और बच्चों की रचनाशीलता बढ़ती है।
आर्ट एंड क्राफ्ट
ज्यादातर बच्चों को आर्ट एंड क्राफ्ट पसंद होता है। बच्चों को गैजेट्स के बजाए ऐसे गेम्स लाकर दें, जिनसे उनकी क्रिएटिविटी विकसित हो। बाजार में पजल गेम्स, म्यूजिक बॉक्स, ब्रेन गेम्स, पेंटिंग, ब्लॉक बिल्डिंग, क्ले आदि कई विकल्प मौजूद हैं। अगर बच्चों की इनमें रुचि जग गई, तो वो टीवी-मोबाइल सब भूल जाएंगे। आप उन्हें कैरम, लूडो, चेस, वर्ड पजल जैसे कई इंडोर गेम्स भी दे सकते हैं।
घर की जिम्मेदारी
बच्चों को छोटी-छोटी जिम्मेदारी सौंपें। उन्हें आपके साथ रहना, काम करना और जिम्मेदारी उठाना अच्छा लगेगा। साथ ही आपकी बॉन्डिंग भी बनेगी। आप बच्चों से कपड़े सुखाना, पौधों में पानी डालना, किचन के छोटे-मोटे काम, सैंडविच बनाना जैसे काम सौंप सकते हैं। सिर्फ इस बात का ध्यान रखें कि जो काम उन्हें सौंपे को उनकी रुचि का हो।