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Panch Dev Puja: 5 मंत्रों से करें पंच देव की पूजा, मिलेगा सुख-समृद्धि का आर्शीवाद

Panch dev puja worship panch dev daily with these five mantras: digi desk/BHN/नई दिल्ली/ सनातन धर्म में किसी भी प्रकार का मांगलिक या धार्मिक कार्य पंचदेव की पूजा के बिना पूरा नहीं माना जाता है। पंच देव की पूजा अनिवार्य मानी गई है। पंच देव में भगवान श्रीगणेश, देवी मां दुर्गा, महादेव शिव, भगवान श्रीहरि विष्णु और सूर्य देव इन्हीं को पंच देव कहा गया है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार नियमित पंच देव की पूजा करने से इन सभी की कृपा प्राप्ति होती है। सुख-समृद्धि का आर्शीवाद मिलता है। यदि आप समय के आभाव में पंचदेवों की पूजा विधि-विधान से नहीं कर पाते हैं तो हम आपको कुछ आसान तरीका बताने जा रहे हैं जिसके माध्यम से आप मात्र 5 मिनट में पंच देव को प्रसन्न कर सकते हैं।

पंचदेवताओं में भगवान श्री गणेश जी महाराज जलतत्व के अधिपति हैं। पंच देवों की पूजा में सर्वप्रथम नीचे दिए गए मंत्र से श्री गणेश का प्रतिदिन ध्यान कीजिए।

1.श्री गणेश जी का ध्यान मंत्र

प्रात: स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुं सिन्दूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मम्।

उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्ड – माखण्डलादिसुरनायकवृन्दवन्द्यम्।।

अग्नि तत्त्व की की स्वामिनी देवी मां दुर्गा हैं। मां शक्ति की साधना अग्निकुंड के हवन आदि के माध्यम से करने का विधान है।

2. श्री देवी जी का ध्यान मंत्र

प्रात: स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभां सद्रत्नवन्मकरकुण्डलहारभूषाम् ।

दिव्यायुधोर्जितसुनीलसहस्त्रहस्तां रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशाम् ।।

भगवान शिव पृथ्वी तत्त्व के स्वामी है, ऐसे में पंचदेवों में उनकी शिवलिंग के रुप में पूजा करने का विधान है।

3.श्री शिव जी का ध्यान मंत्र

प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् ।

खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥

भगवान विष्णु आकाश तत्त्व के स्वामी हैं, इसलिए उनकी साधना शब्दों अर्थात् मंत्रादि के माध्यम से करने का विधान है।

4.श्री विष्णु जी का ध्यान मंत्र

प्रात: स्मरामि भवभीतिमहार्तिनाशं नारायणं गरुडवाहनमब्जनाभम्।

महाभिभृतवरवारणमुक्तिहेतुं चक्रायुधं तरुणवारिजपत्रनेत्रम्॥

प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्यदेव वायु तत्व के स्वामी हैं। ऐसे में उन्हें पवित्र जल से अर्घ्य एवं नमस्कार के माध्यम से साधना की जाती है।

5.श्री सूर्यदेव जी का ध्यान मंत्र

प्रातः स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं, रूपं हि मण्डलमृचोअथ तनुर्यन्जूषि।

सामानि यस्य किरणा: प्रभावादिहेतुं, ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरूपम्।।

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