Sarvapitra Amavasya: digi desk/BHN/नई दिल्ली/ हिंदू धर्म में पितरों के मोक्ष की कामना के लिए पितृपक्ष में श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान आदि करने की परंपरा चली आ रही है। माना जाता है कि पितृपक्ष में पितरों के लिए श्राद्ध करने पर उन्हें मुक्ति मिलती है। साथ ही उनका आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। पितृपक्ष में दिवंगत लोगों के तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। इस बार पितृ पक्ष 10 सितंबर से शुरु हो चुका है जो कि 25 सितंबर तक रहेगा। 25 सितंबर रविवार को सर्वपितृ अमावस्या रहेगी। इस दिन सभी ज्ञात और अज्ञात दिवंगत का श्राद्ध किया जाता है। आइए जानते हैं कि किसे और किसका श्राद्ध करने का अधिकार प्राप्त होता है।
- – तर्पण तथा पिंडदान केवल पिता के लिए ही नहीं बल्कि समस्त पूर्वजों और मृत परिजनों के लिए भी किया जाता है।
- – समस्त कुल, परिवार तथा ऐसे लोगों को भी जल दिया जाता है जिन्हें जल देने वाला कोई न हो।
- – पिता के श्राद्ध का अधिकार उसके बड़े पुत्र को होता है लेकिन जिसके पुत्र न हो तो उसके सगे भाई या उनके पुत्र श्राद्ध कर सकते हैं। यदि कोई नहीं हो तो उनकी पत्नी श्राद्ध कर सकती है।
- – श्राद्ध का अधिकार पुत्र को प्राप्त होता है। लेकिन यदि पुत्र जीवित न हो तो पौत्र, प्रपौत्र या विधवा पत्नी भी श्राद्ध कर सकती है।
- – पुत्र के न रहने पर पत्नी का श्राद्ध पति भी कर सकता है।
- – जो कुंआरा मरा हो उसका श्राद्ध उसके सगे भाई कर सकते हैं। जिसके सगे भाई न हो उसका श्राद्ध उसके दामाद या पुत्री के पुत्र या फिर परिवार में कोई न होने पर उसने जिसे उत्तराधिकारी बनाया हो वह व्यक्ति उसका श्राद्ध कर सकता है।
- – यदि सभी भाई अलग-अलग रहते हैं तो वे भी अपने-अपने घरों में श्राद्ध का कार्य कर सकते हैं। यदि संयुक्त रूप से एक ही श्राद्ध करें तो अच्छा होगा।
- – यदि कोई भी उत्तराधिकारी न हो तो प्रपौत्र या परिवार को कोई भी व्यक्ति श्राद्ध कर सकता है।
- – श्राद्ध करने का अधिकार सबसे पहले पिता पक्ष को होता है। पिता पक्ष नहीं है तो माता पक्ष को और माता-पिता का पक्ष नहीं है तो पुत्री पक्ष के लोग श्राद्ध कर सकते हैं। अगर यह भी नहीं है तो उत्तराधिकारी या जिन्होंने सेवा की है वे श्राद्ध कर सकते हैं।
- – श्राद्ध उसे ही करना चाहिए जो श्रद्धापूर्वक यह करना चाहता है और जिसके मन में मृतक की मुक्ति हो ऐसी कामना है।