Balaghat Naxal Encounter: digi desk/BHN /बालाघाट/ पूरा परिवार घर की बेटी के नक्सली बनने से परेशान था। मां को उम्मीद थी कि रास्ते से भटकी बेटी एक न एक दिन जरूर घर लौटकर आएगी। लेकिन ऐसा हो न सका और 10 साल बाद उसकी मौत की खबर आई। छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिला के बासागुंडा थाना क्षेत्र के कोरसागुंडा गांव निवासी लक्ष्क्षो पूने मुरिया को जब बेटी के मारे जाने की खबर मिली तो वह गुरुवार को बालाघाट पहुंची। बालाघाट के कंदला के जंगल में पुलिस के साथ मुठभेड़ में रविवार रात तीन नक्सलियों की मौत हुई थी।
महिला नक्सली रामे पूने की मां लक्ष्क्षो पूने मुरिया अपने रिश्तेदारों के साथ जिला अस्पताल पहुंची और एसपी समीर सौरभ की मौजूदगी में कागजी कार्रवाई को पूर्ण कर शव लिया। कान्हा भोरम दलम की एरिया कमेटी सदस्य महिला नक्सली रामे पर मध्यप्रदेश में तीन, महाराष्ट्र में छह व छत्तीसगढ़ में पांच लाख का इनाम था।
2012 में घर छोड़ा था
जीजा सेमलाल ने बताया कि रामे ने पढ़ाई नहीं की थी। वह नक्सलियों के बरगलाने पर 2012 में घर छोड़कर चली गई और दलम में शामिल हो गई। इसके बाद उसकी कोई सूचना नहीं मिली। रामे के पिता आयतु मुरिया की करीब पांच साल पहले बीमारी के चलते मौत हो गई थी। इस दौरान भी वह पिता के अंतिम संस्कार में नहीं आई। उसका भाई सुक्कू पूने (22) बीमार है, जिसे देखने भी वह पहुंची नहीं थी। उसका परिवार खेती-किसानी करता है और उनके पास करीब तीन एकड़ जमीन है।
गांव में 95 मकान
रिश्तेदारों ने बताया कि कोरसागुंडा गांव में करीब 95 मकानों में ग्रामीण निवास करते हैं। यहां रोजगार का जरिया खेती किसानी ही है।