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UP Legislative Assembly: कांग्रेस के लिए ‘काला दिन’ बनेगा 6 जुलाई, 113 साल बाद UP विधान परिषद से होगी ‘शून्य’

UP Legislative Assembly: digi desk/BHN/नई दिल्ली/ उत्तर प्रदेश के संसदीय इतिहास में 6 जुलाई का दिन कांग्रेस पार्टी के लिए काला दिन साबित होने वाला है। दरअसल 113 साल के संसदीय इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब उत्तर प्रदेश विधान परिषद से कांग्रेस का प्रतिनिधित्व शून्य हो जाएगा। उत्तर प्रदेश विधानसभा परिषद से कांग्रेस पार्टी को पूरी तरह से सफाया हो जाएगा। 6 जुलाई को उत्तर प्रदेश विधानसभा परिषद में कांग्रेस पार्टी के एकमात्र सदस्य दीपक सिंह का कार्यकाल खत्म हो रहा है। कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे मोतीलाल नेहरू से लेकर अभी कोई तक कोई न कोई सदस्य यूपी विधानसभा परिषद का सदस्य जरूर रहा है, लेकिन ऐसा 113 साल में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब इस सदन में कांग्रेस का एक भी सदस्य नहीं होगा।

1887 में गठित हुई थी यूपी विधान परिषद
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की स्थापना 5 जनवरी 1887 को हुई थी। तब UP Legislative Assembly में 9 सदस्य थे, लेकिन 1909 के अधिनियम के बाद सदस्य संख्या बढ़ाकर 46 कर दी गई, जिसमें गैर सरकारी सदस्यों की संख्या 26 रखी गई। इन सदस्यों में से 20 निर्वाचित और 6 मनोनीत सदस्य होते थे।

मोती लाल नेहरू ने 7 फरवरी 1909 को विधान परिषद की सदस्यता ली और मोतीलाल नेहरू को ही UP Legislative Assembly का पहले निर्वाचित सदस्य माना जाता है। लेकिन बाद में 1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के कारण कई सदस्यों ने UP Legislative Assembly से इस्तीफा दे दिया था। उस समय उत्तर प्रदेश को संयुक्त प्रांत के नाम से जाना जाता था।

पहले सदन में कांग्रेस का था वर्चस्व
UP Legislative Assembly में 1989 तक कांग्रेस का वर्चस्व रहा है। सिर्फ 1977 और 1979 विधान परिषद के नेता का पद तत्कालीन जनता पार्टी के पास था, लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस पार्टी बीते 33 वर्षों में सिकुड़ती गई। हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस निम्नतम स्थिति में पहुंच गई। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के सिर्फ 2 विधायक ही चुनकर सदन में पहुंचे हैं।

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