हिंदुओं के लिए प्रभु श्री राम मात्र एक नाम भर नहीं, बल्कि मन-प्राण हैं, जीवन-आधार हैं। उनसे भारत अर्थ पाता है। वह भारत के पर्याय और प्रतिरूप हैं और भारत उनका। उनके नाम-स्मरण एवं
महिमा-गायन में कोटि-कोटि जनों को जीवन की सार्थकता का बोध होता है। भारत के कोटि-कोटि जन उनके दृष्टिकोण से जीवन के विभिन्न संदर्भों-पहलुओं का आकलन-विश्लेषण करते हैं। भारत से राम और राम से भारत को कभी विलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि राम भारत की आत्मा हैं। भला आत्मा और शरीर को कभी विलग किया जा सकता है। राम के सुख में भारत के जन-जन का सुख आश्रय पाता है। उनके दुख में भारत का कोटि-कोटि जन आंसुओं के सागर में डूबने लगता है। कितना अद्भुत है उनका जीवन चरित, जिसे बार-बार सुनकर भी और सुनने की चाह बची रहती है। इतना ही नहीं, उस चरित को पर्दे पर अभिनीत करने वाले, लिखने वाले, उनकी कथा बांचने वाले हमारी श्रद्धा के केंद्र बन जाते हैं। उस महानायक से जुड़ते ही सर्वसाधारण के बीच से उठा-उभरा आम जन भी नायक सा लगने लगता है।
रामनवमी के अवसर पर यह प्रश्न उचित ही होगा कि आखिर किस षड्यंत्र के अंतर्गत तमाम पुरातात्विक अवशेषों और प्रमाणों के बावजूद उनके होने के प्रमाण मांगे जाते रहे? आखिर किस षड्यंत्र के अंतर्गत उनकी स्मृतियों को उनके जन्मस्थान से मिटाने-हटाने के असंख्य प्रयत्न किए जाते रहे? क्यों तमाम दलों एवं बुद्धिजीवियों को केवल राम-मंदिर से ही नहीं, बल्कि राम-नाम के जयघोष से, चरित-चर्चा-कथा से भी आपत्ति है? क्यों उन्हें एक आक्रांता की स्मृति में खड़े गुलामी के प्रतीक से इतना मोह है? मजहब बदलने से पुरखे नहीं बदलते, न संस्कृति ही बदलती है।
प्रश्न तो यह भी उचित होगा कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी जिस एक चरित्र को हम अपनी सामूहिक एवं गौरवशाली थाती के रूप में सहेजते-संभालते आए, आखिर किन षड्यंत्रों के अंतर्गत उसे काल्पनिक बताया जाता रहा? उसके अस्तित्व को लेकर शंका के बीज वर्तमान पीढ़ी के हृदय में किसने और क्यों बोए? जो एक चरित्र करोड़ों लोगों के जीवन का आधार रहा हो, जिसमें करोड़ों लोगों की सांसें बसी हों, जिससे कोटि-कोटि जन प्रेरणा पाते हों, जिसने हर काल और हर युग के लोगों को संघर्ष एवं सहनशीलता, धैर्य एवं संयम, विवेक एवं अनुशासन की प्रेरणा दी हो, जिसके चरित्र की शीतल छाया में कोटि-कोटि जनों के ताप-शाप मिट जाते हों, जिसका धर्म-अधर्म का सम्यक बोध कराता हो, जो मानव-मात्र को मर्यादा और लोक को ऊंचे आदर्शों के सूत्रों में बांधता-पिरोता हो, विद्वान मनीषियों के हृदय में बारंबार नवीन एवं मौलिक रूप में आकार ग्रहण करता हो, ऐसे परम तेजस्वी, ओजस्वी, पराक्रमी, श्रीराम को काल्पनिक बताना राष्ट्र की चेतना, प्रकृति और संस्कृति का उपहास उड़ाना नहीं तो और क्या है?
प्रभु श्रीराम ने सर्वसाधारण यानी वनवासी-गिरिवासी, केवट-निषाद-कोल-भील-किरात से लेकर वानर-भालू-रीछ जैसे वन्यप्राणियों को भी उनकी असीमित शक्ति की अनुभूति कराई थी। यह रामनवमी अपने भीतर छिपी उन्हीं आंतरिक शक्तियों को जागृत करने की है। हम संपूर्ण मानवता के शत्रु को पर अपने सामूहिक धैर्य, विवेक, संयम, साहस और अनुशासन से विजय पा सकते हैं। उत्सवर्धिमता हम भारतीयों की पहचान है।
हमारी संस्कृति सृजनधर्मा है। हम सृजन के वाहक बन समय की हर चाप और चोट को सरगम में पिरोते रहेंगे। श्रीराम के प्रति अपनी सामूहिक आस्था एवं विश्वास के बल पर हम सनातन संस्कृति पर हो रहे हमलों से साहस, सावधानी और सतर्कता से जूझेंगे, लड़ेंगे और पार पाएंगे। आइये इस बार रामनवमी इसी संकल्प के साथ मनाएं।
“भास्कर हिंदी न्यूज़” परिवार की ओर से आप सभी सुधिजनो को रामनवमीं की हार्दिक शुभकामनाएं