CBSE 10th and 12th board examinations will be held in two further terms education ministry has given indications: digi desk/BHN/नई दिल्ली/ केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने भले ही कोविड संकट की मौजूदा स्थिति से निपटने के लिए 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को दो टर्म में आयोजित करने जैसा कदम उठाया है, लेकिन अब यह पहल आगे भी जारी रहेगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) आने के पहले से ही बोर्ड परीक्षाओं में सुधार लाने में जुटे शिक्षा मंत्रालय ने इसके संकेत दिए हैं। साथ ही वह राज्यों को भी जल्द ही अपनी बोर्ड परीक्षाओं में सुधार के लिए ऐसे ही कदमों को उठाने का सुझाव देगा।
बोर्ड परीक्षाओं में सुधार को लेकर आगे बढ़ी सरकार
मंत्रालय के मुताबिक, सीबीएसई की बोर्ड परीक्षाओं को दो टर्म में कराने से जुड़े फीडबैक भी जुटाए जा रहे हैं। इन्हीं के आधार पर राज्यों को आगे बढ़ने की राह दिखाई जाएगी। वैसे भी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बोर्ड परीक्षाओं में सुधार को लेकर कई अहम सिफारिशें की गई हैं। इनमें बोर्ड परीक्षाओं से जुड़े सुधारों को तत्काल अमल में लाने की जरूरत बताई गई है। खास बात यह है कि सीबीएसई ने 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाओं को दो टर्म में कराने का जो फैसला लिया है, उसकी नीति में भी सिफारिश की गई है। साफ है कि सीबीएसई ने एक रणनीति के तहत ही नीति की सिफारिशों को अपनाया है। इसमें पहले टर्म में आधे कोर्स की परीक्षा बहु-विकल्पीय है, जबकि दूसरे टर्म में बाकी के आधे कोर्स की परीक्षा विश्लेषण पर आधारित है।
बोर्ड परीक्षाओं को दो टर्म में कराने का सुझाव
अधिकारियों के मुताबिक, बोर्ड परीक्षाओं को लेकर देश में जिस तरह का हौवा है, उसे पूरी तरह से खत्म करने की कोशिश है। इससे छात्रों का सही विकास नहीं हो पाता क्योंकि ज्ञान हासिल करने के बजाय पूरे समय उनका फोकस परीक्षाओं में अच्छे नंबर लाने पर रहता है। मौजूदा समय में बोर्ड परीक्षाओं का जो पैटर्न है, वह प्रतियोगी परीक्षाओं के अनुकूल भी नहीं है। ज्यादातर प्रतियोगी परीक्षाओं में बहु-विकल्पीय प्रश्न ही पूछे जाते हैं, जबकि बोर्ड परीक्षाओं में प्रश्नों का पैटर्न विश्लेषण करने वाला है। यही वजह है कि सीबीएसई ने पहले टर्म की बोर्ड परीक्षाओं का पैटर्न बहु-विकल्पीय रखा है।
कोचिंग संस्कृति खत्म करने के लिए भी सुधार जरूरी
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कोचिंग संस्कृति को पूरी शिक्षा व्यवस्था के लिए नुकसानदायक बताया गया है। इसमें कहा गया है कि इससे निजात तभी मिल सकती है जब परीक्षाओं को आसान बना दिया जाए। अभी परीक्षाओं का हौवा दिखाकर ही कोचिंग संस्थान फल-फूल रहे हैं। जैसे ही परीक्षाएं आसान हो जाएंगी, कम कोर्स के साथ होंगी तो कोचिंग स्वत: खत्म हो जाएंगी।