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Chaitra Navratri: श्मशान में कंकालों के बीच नागा साधु पूजते थे मां काली को, इसलिए नाम पड़ा कंकाली मंदिर

Among the skeletons in-the crematorium the naga sadhus worshiped maa kali hence the name kankali temple: digi desk/BHN/रायपुर/राजधानी रायपुर के ब्राह्मणपारा इलाके में वर्तमान में जो कंकाली मंदिर है, वहां पांच सौ साल पहले श्मशान हुआ करता था। नागा साधु श्मशान में जलती चिता, कंकालों के बीच मां काली की पूजा करते थे, इसलिए मंदिर का नाम कंकाली मंदिर पड़ गया। मंदिर के सामने सरोवर है, इसमें नवरात्र के अंतिम दिन जवारा विसर्जन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि सरोवर में स्नान करने से चर्मरोग दूर होता है।

कंकाली मंदिर के पुजारी पं.आशीष शर्मा बताते हैं कि कंकाली मंदिर 500 साल से अधिक प्राचीन है। उस समय पूरा इलाका घनघोर जंगल हुआ करता था। जिस जगह पर मंदिर है वहां श्मशान घाट था। अघोरी नागा साधु नर मुंड, कंकालों के साथ तांत्रिक पूजा करते थे। नागा साधुओं ने मां काली को प्रतिष्ठापित किया था। श्मशान घाट में चिता जलने के बाद कंकाल (अस्थियों) का विसर्जन सरोवर में किया जाता था। जिससे सरोवर का नाम कंकाली सरोवर पड़ गया और माँ काली को कंकाली कहा जाने लगा।

मठ में साधुओं की समाधि

जहां माँ कंकाली की प्रतिमा थी, वह नागा साधुओं का मठ भी कहा जाता था। नागा साधुओं की मृत्यु के बाद मठ में ही समाधि बना दी जाती थी। बाद में मठ की प्रतिमा को मंदिर में स्थानांतरित किया गया। मठ में अभी भी समाधियां बनी हुई है।

मठ में है प्राचीन शस्त्र

मठ से प्रतिमा को मंदिर में स्थानांतरित करने के बाद मठ को बंद कर दिया गया, लेकिन अभी भी वहां प्राचीन शस्त्र रखे हैं। उन शस्त्रों की पूजा साल में एक दिन दशहरा के दिन की जाती है। मठ में नागा साधुओं के कमंडल, चिमटा, त्रिशूल, ढाल, कुल्हाड़ी, तलवार समेत अनेक शस्त्र रखे हुए हैं।

महंत कृपाल गिरी को कन्या रूप में हुआ था दर्शन

कहा जाता है कि महंत कृपाल गिरि ने कंकाली मंदिर बनवाया था। माता ने कन्या रूप में उन्हें दर्शन दिया था लेकिन वे माता को पहचान नहीं पाए। जब मां अंतर्धान हुई तब उनकी तंद्रा टूटी और वे बहुत पछताए। बाद में महंत ने जीवित समाधि ले ली।

25 फीट गहरा सरोवर

नागा साधु माँ कंकाली के साथ शिवजी की भी पूजा करते थे। ऐसी मान्यता है कि शिव पूजा के दौरान धरती से जलधारा फूट पड़ी। शिव मंदिर डूब गया। आज भी 25 फीट से ज्यादा ऊंचा शिव मंदिर पानी में डूबा हुआ है। केवल गुम्बद ही दिखाई देता है। सरोवर के किनारे खड़े रहकर ही सरोवर में डूबे शिवलिंग की पूजा की जाती है।

सरोवर के भीतर सुरंग से जुड़ा है बूढा तालाब

राजधानी के अनेक तालाब गर्मी के दिनों में सूख जाते हैं, लेकिन कंकाली सरोवर कभी नहीं सूखा। श्रद्धालु इसे देवी माँ और शिवजी का चमत्कार मानते हैं। कहा जाता है कि सरोवर के भीतर सुरंग है, जो आधा किलोमीटर दूर बूढा तालाब और महामाया मंदिर की बावड़ी से जुड़ी है।

चर्म रोगों से मुक्ति

सरोवर के बारे में एक खास बात यह कही जाती है कि यह सरोवर चमत्कारी है। सरोवर में स्नान करने से दाद, खाज, खुजली जैसे चर्म रोग से मुक्ति मिलती है।नवरात्र के दौरान घर-घर में बोए जाने वाले जंवारा और जोत का विसर्जन करने दूर दूर से श्रद्धालु सरोवर में पहुंचते हैं।

 

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