Unveiling of bronze statue tantia bhil mama in patalpani today on his martyrs day: digi desk/BHN/महू/ टंट्या भील मामा बलिदान दिवस पर पातालपानी में राज्यपाल मंगुभाई पटेल और सीएम शिवराज सिंह चौहान उनकी अष्ट धातु की प्रतिमा का अनावरण किया। राज्यपाल और मुख्यमंत्री सबसे पहले टंट्या भील मामा के काली माता मंदिर में पूजा-अर्चना की। इसके बाद मंदिर के पीछे उद्यान में पौधारोपण किया। यहीं कार्यक्रम के मंच पर टंट्या भील के वंशजों का सम्मान पर किया गया। इस दौरान तुलसीराम सिलावट, मंत्री उषा ठाकुर, मंत्री मीना सिंह और अन्य जनप्रतिनिधि भी उपस्थित रहे। मुख्य कार्यक्रम इंदौर के नेहरू स्टेडियम में होगा, जिसका सीधा प्रसारण पातालपानी में बड़ी स्क्रीन पर किया जाएगा।
सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि इस धरती को प्रणाम जहां टंट्या मामा ने बलिदान दिया। उन्होंने कहा कि टंट्या मामा को पकड़ने के लिए अंग्रेजों ने अलग से पुलिस बनाई थी, लेकिन वो भी उन्हें पकड़ नहीं पाई। एक गद्दार को अंग्रेजों ने अपने साथ मिलाया और जिसकी वजह से वो पकड़ में आ गए। सीएम ने कहा कि आज यहां बड़ा कार्यक्रम होने वाला था, लेकिन बारिश की वजह से वह नहीं हो पाया, लेकिन मुख्य कार्यक्रम आज इंदौर में होगा। आज हमने उस मंदिर में प्रणाम किया जहां काली मैया विराजमान है, जहां टंट्या मामा आकर पूजन करते थे। यहां आज भी परिवार में कुछ भी हो, सबसे पहले यहीं न्यौता दिया जाता है। सीएम ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि आपने पहले टंट्या मामा की प्रतिमा क्यों नहीं लगाई, केवल एक ही परिवार का गुणगान करते रहे। टंट्या मामा का पाठ स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ाया गया।
सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि पातालपानी को विकसित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हर वर्ष 4 दिसंबर के दिन यहां मेला लगेगा। यहां पर्यटन स्वागत केंद्र बनेगा, आदिवासी म्यूजियम बनाया जाएगा, इसे नव तीर्थ स्थल बनाया जाएगा। यह उन सबका सम्मान है, जिनके पुरखों ने आजादी के लिए अपना बलिदान दिया है। उन्होंने कहा कि हम आदिवासियों के जीवन बलदने का अभियान चलाएंगे।
सीएम ने कहा, हमारे परम श्रद्धेय जननायक टंट्या मामा की स्मृति में प्रतिवर्ष 4 दिसंबर को पातालपानी में मेला लगेगा। क्षेत्र का विकास किया जाएगा। उनकी स्मृतियों को संजोया जाएगा, जिससे देश को उनके व्यक्तित्व और बलिदान से प्रेरणा मिल सके। जनजातीय नायकों ने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया, लेकिन आजादी के बाद लंबे समय तक शासन करने वालों ने इन्हें कोई महत्व नहीं दिया। जनजातीय नायकों के योगदान को भुला दिया गया।