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Chhath Puja: जानिये, छठ में किस देवी की होती है पूजा, क्या है इसकी पौराणिक कथा

Chhath Puja 2021: digi desk/BHN/नई दिल्ली/छठ पूजा धार्मिक और सांस्कृतिक आस्था का लोकपर्व है। यही एकमात्र ऐसा त्योहार है, जिसमें सूर्य देव का पूजन कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। वैसे भी हिन्दू धर्म में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है। सभी वैदिक-धार्मिक अनुष्ठानों की शुरुआत में पंचदेवता की पूजा होती है, जिनमें सूर्य भी एक हैं। छठ महापर्व में भी सूर्यदेव के लिए व्रत किया जाता है और उनकी पूजा होती है, इसलिए इसे सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। छठ का यह व्रत संतान-प्राप्ति एवं उनके सुखी एवं स्वस्थ जीवन के लिए किया जाता है। हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि से चार दिवसीय छठ महापर्व की शुरुआत होती है।

छठ पर्व में किसकी होती है पूजा?

छठ महापर्व में मुख्यतः सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने वाले देवता हैं, जो पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार हैं। सूर्य देव के साथ-साथ छठ पर छठी मैया की पूजा का भी विधान है। पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी मैया या षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं। शास्त्रों में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है। पुराणों में इन्हें माँ कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि पर होती है। षष्ठी देवी को ही स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा जाता है।

छठ पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा

छठ पर्व का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलता है। एक कथा के अनुसार प्रथम मानव स्वयंभू मनु के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। इस वजह से वे दुःखी रहते थे। महर्षि कश्यप ने राजा से पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने को कहा। महर्षि की आज्ञा अनुसार राजा ने यज्ञ कराया। इसके बाद महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्य से वह शिशु मृत पैदा हुआ। इस बात से राजा और अन्य परिजन बेहद दुःखी थे। तभी आकाश से एक विमान उतरा जिसमें माता षष्ठी विराजमान थीं। जब राजा ने उनसे प्रार्थना की, तो उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा – मैं ब्रह्मा की मानस पुत्री षष्ठी देवी हूं। मैं विश्व के सभी बालकों की रक्षा करती हूं और निःसंतानों को संतान प्राप्ति का वरदान देती हूं।” इसके बाद देवी ने मृत शिशु को आशीष देते हुए हाथ लगाया, जिससे वह जीवित हो गया। देवी की इस कृपा से राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने षष्ठी देवी की आराधना की। ऐसी मान्‍यता है कि इसके बाद ही धीरे-धीरे हर ओर इस पूजा का प्रसार हो गया।

छठ पूजा का धार्मिक महत्व

सूर्य ही एक ऐसे देवता हैं जिन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा जाता है। वेदों में सूर्य देव को जगत की आत्मा कहा जाता है। सूर्य के प्रकाश में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पाई जाती है। सूर्य के शुभ प्रभाव से व्यक्ति को आरोग्य, तेज और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य को आत्मा, पिता, पूर्वज, मान-सम्मान और उच्च सरकारी सेवा का कारक कहा गया है। छठ पूजा पर सूर्य देव और छठी माता के पूजन से व्यक्ति को संतान, सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। सांस्कृतिक रूप से छठ पर्व की सबसे बड़ी विशेषता है इस पर्व की सादगी, पवित्रता और प्रकृति के प्रति प्रेम का भाव।

पर्व का खगोलीय महत्व

वैज्ञानिक और ज्योतिषीय दृष्टि से भी छठ पर्व का बड़ा महत्व है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर है, जिस समय सूर्य धरती के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित रहता है। इस दौरान सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं। इन हानिकारक किरणों का सीधा असर लोगों की आंख, पेट व त्वचा पर पड़ता है। छठ पर्व पर सूर्य देव की उपासना व अर्घ्य देने से सूर्य के इन नकारात्मक प्रभावों का मनुष्य पर कम असर पड़ता है। 36 घंटे का व्रत और सात्विक भोजन, व्रती को सूर्य से उचित ऊर्जा लेने में मदद करता है।

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