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Health News: आंखों की रोशनी चुराने वाली बीमारी का तुरंत पता लगाएगी AI तकनीक, आसान होगा इलाज

Glaucoma will treated with artificial intelligence ai know/नई दिल्ली/आंखों की खतरनाक बीमारी ग्लूकोमा की जांच के लिए अब आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है। सिंगापुर की नानयांग प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने टैन टॉक सेंग अस्पताल (TTSH) के साथ मिल कर खास तकनीक विकसित की है। इस तकनीक के जरिए सिर्फ आपकी आंखों की फोटो खींच कर ग्लूकोमा का पता लगाया जा सकता है। ये तकनीक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर काम करती है। इसके तहत दो अलग-अलग कैमरों की मदद से आंख की तस्वीरें ली जाती हैं।

इस तकनीक के तहत बाएं और दाहिनी ओर से आंख की 2डी फोटो ली जाती है। इनके जरिए वैज्ञानिकों ने 3डी पिक्चर विकसित की। वैज्ञानिकों की ओर से तय किए गए एक निश्चित एल्गोरिदम के जरिए इस तस्वीर के जरिए ग्लूकोमा का पता लगाया जा सका। ग्लूकोमा आंखों की खतरनाक बीमारी है। समय पर इलाज न होने पर आंखों की रोशनी भी चली जाती है। इस तकनीक के जरिए आंखों की ऑप्टिकल नर्व में ग्लूकोमा का पता लगाया जाता है। इस तकनीक के जरिए वैज्ञानिकों को ग्लूकोमा के मरीजों की जांच में 97 फीसदी मामलों में एकदम सही परिणाम मिले हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में 2020 में लगभग 76 मिलियन ग्लूकोमा के मरीज थे। इनकी संख्या 2040 में 111.8 मिलियन तक पहुंच सकती है।

पीजीआई चंडीगढ़ के डॉक्टर सुरेंद्र पांडव कहते हैं कि ग्लूकोमा आंखों की एक ऐसी बीमारी है जिसका पता समय से पता लगा पाना बहुत मुश्किल होता है। इसके ऐसे लक्षण नहीं होते जिसे देख कर तुरंत इसकी पहचान की जा सके। वहीं इस बीमारी की पहचान के लिए विशेषज्ञों की जरूरत भी होती है। ऐसे में ग्लूकोमा के बहुत से मरीजों का इलाज तब शुरू हो पाता है कि जब बीमारी काफी बढ़ चुकी होती है। ऐसे में इस बीमारी का पता लगाने में आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस तकनीक काफी कारगर साबित हो सकती है।

Nanyang Technological University के वैज्ञानिकों के मुताबिक इस तकनीक का फायदा ऐसे इलाकों को बड़े पैमाने पर मिल सकता है जहां नेत्र रोग विशेषज्ञ की सुविधा उपलब्ध न हो। इस रिसर्च के को ऑर्थर डॉ लियोनार्ड यिपो के मुताबिक भारत जैसे विकासशील देशों में ग्लूकोमा के 90 फीसदी तक मरीजों की समय पर जांच ही नहीं हो पाती है और समय पर इलाज ही नहीं मिल पाता है। वहीं ग्लूकोमा की जांच करने की मशीनें काफी महंगी है। ऐसे में छोटी जगहों पर मरीजों की बड़े पैमाने पर जांच करना आसान नहीं है। वहीं एक व्यक्ति की रेटीना की जांच में काफी समय खर्च होता है। ऐसे में ये एआई तकनीक मरीजों को काफी फायदा पहुंचा सकती है।

एनटीयू स्कूल ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर और इस स्टडी के लीड ऑर्थर वांग  लिपो के मुताबिक मशीन लर्निंग तकनीक के जरिए हमारी टीम ने खास स्क्रीनिंग मॉडल डेवलप किया है। इस तकनीक के जरिए सिर्फ आंखों की तस्वीर से बीमारी का पता लगाया जा सकता है। इस तकनीक के इस्तेमाल पर  ophthalmologists की जरूरत पूरी तरह से खत्म हो जाएगी। अब तक  ophthalmologists आंखों का प्रेशर कई तरह से नाप कर इस बीमारी का पता लगाते थे।

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