वरदान के अनुसार राजा ने वारंगल के गोदावरी के तट से उत्तर की ओर अपनी यात्रा प्रारंभ की। राजा अपने पीछे चली आ रही माता का अनुमान उनके पायल की घुंघरुओं से कर रहे थे। शंखिनी और डंकिनी की त्रिवेणी पर नदी की रेत में देवी के पैरों की घुंघरुओं की आवाज रेत में दब जाने के कारण बंद हो गई तो राजा ने पीछे मुड़कर देख लिया। इसके बाद देवी वहीं ठहर गईं। कुछ समय पश्चात मां दंतेश्वरी ने राजा के स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि मैं शंखिनी-डंकिनी नदी के संगम पर स्थापित हूं। कहा जाता है कि मां दंतेश्वरी की प्रतिमा प्राकट्य मूर्ति है और गर्भगृह विश्वकर्मा द्वारा निर्मित है। शेष मंदिर का निर्माण कालांतर में राजा ने किया।

ऐसे पहुंचें : यहां तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग का साधन सुगम है। रायपुर से बस से जगदलपुर पहुंचकर दंतेवाड़ा पहुंचा जा सकता है। मंदिर प्रसिद्ध होने के कारण साधनों की कमी नहीं पड़ती।