आलेख-योगेश गौतम
ब्राह्मण : ब्राह्मण का शाब्दिक अर्थ है, ब्रह्म जनाति अर्थात जो ब्रह्म को जनता है जो भगवान को जानता है!
ब्राह्मण वर्ण व्यवस्था में उच्च स्थान दिया गया उसके कुछ कारण आप लोगों के सामने रखूँगा जिससे आप भी इत्तफाक रखेंगे ऐसी मेरी सोंच है!!
वर्ण व्यवस्था में हमारे समाज को चार वर्णों मे बाँटा गया, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र!!
मेरे हिसाब से जो समाज के लिए जितना समर्पित होगा अथवा जिसमें जितना त्याग होगा उसे उस हिसाब से वर्ण व्यवस्था में अलंकृत किया जायेगा!!
मैं किसी दूसरे वर्ण पर कोई टिप्पणी न करते हुए मैं ब्राह्मण का समर्पण और त्याग सबको याद दिलाता हूँ, शायद फिर आप लोग ब्राह्मण को गाली देना बंद कर दे!
कुछ हद तक ब्राह्मण खुद अपनी दुर्गति का कारण बन रहा है जिसे उसको समझना होगा तथा अपने पतन में अपनी भी आहुति डालने से बचना होगा!!
अब आप सोंच रहे होंगे कि आखिर क्या किया ब्राह्मण ने जो वर्ण व्यवस्था में सर्वोच्च पर रखा गया और आज सबसे ज्यादा गाली वही खा रहा है!
सतयुग: मैं ब्राह्मण का त्याग शुरू करना चाहता हूँ सतयुग काल से जब राजा हरिशचंद्र का सत्य सिद्ध करना था तो परीक्षा लेने के लिए भगवान के साथ किसे जाना पड़ा विश्वामित्र को उन्होंने परीक्षा ली और राजा हरिश्चंद्र का यश-गान के लिए अपने यश की आहुति दी और अपयश का कारक बनें! ब्राह्मण ही किसी दूसरे के यश का महिमामंडन के लिए खुद अपयश लेता है!!
त्रेता युग: भगवान श्री राम को पहली बार भगवान परसुराम जी ने ही सिद्ध किया था भगवान राम को भगवान सिद्ध करने के लिए उन्होंने सारा यश खत्म कर दिया था और कहा था कि हे प्रभु इस अमोघ बाण से मेरा यश खत्म कर दो और आपका यश सदा सदा के लिए अमर हो जाय!!
द्वापर युग: द्रोणाचार्य का त्याग कौन नहीं जानता, अपने राजा के प्रति समर्पण इस कदर था कि अपने अपयश का ख्याल नही रखा और एकलव्य को धनुष विद्या नहीं सिखाया!!
अब आते है कलयुग में जहाँ रोज ब्राह्मण को परीक्षा देना है और रोज अपने आप को सिद्ध करना है!
कलयुग: कहाँ से शुरू करूँ
ब्राह्मण एक ऐसा वर्ण है सिर्फ जिसकी जीवन शैली ही परिभाषित है! सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक सबकुछ इसकी जीवनचर्या निर्धारित है और यदि कही जीवकोपार्जन के लिए इधर उधर हुआ तो सबसे पहले उसके वर्ण पर प्रहार होगा।
जैसे ब्रम्ह मुहूर्त में उठा नही….. अरे यह ब्राह्मण है?
सूर्योदय के पहले स्नान किया नही….. अरे यह ब्राह्मण है?
चंदन टीका किया नही…………. अरे यह ब्राह्मण है?
सात्विक भोजन किया नही…….. अरे यह ब्राह्मण है?
पोथी पाठ किया नही………. अरे यह ब्राह्मण है?
अपने बच्चो को अंग्रेजी माध्यम मे पढाया….अरे यह ब्राह्मण है?
हर छोटी बड़ी चीज मे सिद्ध करना पड़ रहा है कि ब्राह्मण है और गाली खा रहा है वर्ण व्यवस्था पर !!
किसी भी कार्य को करने मे सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा!!
दूसरे वर्णो के वेश बदल कर ब्राह्मण रूप धरकर खुश है और खुद ब्राह्मण अपने वेश में दुखी है!!
(पाठको से अनुरोध है की कृपया इस पर प्रतिक्रिया अवश्य दें)
(उपरोक्त विचार लेखक के स्वयं के हैं)