Panna Tiger Reserve: digi desk/BHN/पन्ना/ कभी बाघ विहीन हो चुके और फिर उनके सफल पुनर्स्थापन (रिकोलेशन) से मशहूर हुए मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघों को 11 साल बाद रेडियो कॉलर से मुक्ति मिलेगी। वन विभाग ऐसे सभी बाघों की कॉलर (गर्दन में पहनाई जाने वाली रेडियो डिवाइस) हटाने जा रहा है, जो पार्क में स्थायी रूप से रम गए हैं। अब सिर्फ उन बाघों को कॉलर लगाई जाएगी, जो बार-बार नेशनल पार्क की सीमा से बाहर जाने की कोशिश करते हैं या फिर ज्यादा दिनों तक छिपे रहते हैं।
इसके साथ ही मध्य प्रदेश के दूसरे पार्कों के बाघों को भी कॉलर से आजाद कर दिया जाएगा। प्रदेश में ऐसे 25 बाघ हैं। जिनकी 24 घंटे निगरानी कॉलर लगाकर की जाती है। इनमें से 15 बाघ अकेले पन्ना पार्क में हैं।
राजस्थान के सरिस्का के बाद पन्ना टाइगर रिजर्व ऐसा पार्क था, जहां शिकार के चलते वर्ष 2008 में बाघ खत्म हो गए थे। इस बात की जानकारी सार्वजनिक होने पर बड़ा बवाल मचा और फिर राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की देखरेख में पन्ना पार्क में दोबारा बाघों को बसाने की मुहिम चली।
करीब डेढ़ किलो वजन की इस कॉलर को कुछ बाघ 11 साल से गले में पहने हैं। वन विभाग के अधिकारियों का मानना है कि अब संगठित श्ािकार जैसी गतिविधियां थम गई हैं। बाघ भी पार्क में रम गए हैं इसलिए अब कॉलर की जरूरत नहीं है। एक साल में एक-एक कर सभी बाघों के कॉलर निकाल दिए जाएंगे। गौरतलब है कि वर्तमान में पन्ना पार्क में 50 से ज्यादा बाघ बताए जा रहे हैं।
10 बाघ संजय, कान्हा और सतपुड़ा में
ऐसे 10 बाघ सीधी जिले के संजय दुबरी, मंडला जिले के कान्हा और नर्मदापुरम (होशंगाबाद) जिले के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में हैं। जिनकी कॉलर लगाकर निगरानी की जा रही है।
रुपयों की भी होगी बचत
बाघों की कॉलर हटाने से वन विभाग रुपयों की भी बचत कर पाएगा। अभी कॉलर लगे प्रत्येक बाघ से सौ मीटर की दूरी पर एक दल चलता है। उसके वाहन में लगे एंटीना पर कॉलर से संकेत आते रहते हैं। इससे पता चलता है कि बाघ आसपास है। ये निगरानी 24 घंटे की जाती है और एक दल में तीन से चार सदस्य होते हैं। उपकरणों के रखरखाव, वाहन व्यय और मानव संसाधन पर बड़ी धनराशि खर्च होती है।