Delta varient alert: digi desk/BHN/ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली में कोरोना के डेल्टा वैरिएंट को लेकर एक नई रिसर्च सामने आई है जो बेहद डराने वाली है। यहां शोध में पाया गया है कि कोरोना वैक्सीन लेने के बाद भी डेल्टा वैरिएंट (B1.617.2) काफी असरदार है। यह वैरिएंट वैक्सीन के असर को कम कर रहा है। इस वजह से वैक्सीन लगवाने के बाद संक्रमित हुए ज्यादातर लोगों में डेल्टा वेरियेंट ही पाया गया है।एम्स की स्टडी में भी इस बात भी सामने आई है कि डेल्टा वैरिएंट बहुत खतरनाक है। कोविशील्ड और कोवैक्सीन लगवाने वाले लोग कोरोना के इस नए वेरिएंट से संक्रमित हो रहे हैं। हालांकि, अभी तक इस रिपोर्ट की समीक्षा नहीं की गई है।
क्या है कोरोना का डेल्टा वैरिएंट
भारत में पहली बार कोरोना के जिस प्रकार का पता चला था वो बी.1.167.2 था। ये भारत में अक्टूबर 2020 में पाया गया था। बी.1.167.2 वैरिएंट को ही ‘डेल्टा वैरिएंट’ नाम दिया गया है। ये भारत में सबसे पहले पाए गए तीन में से एक उप-प्रकार है। ये स्ट्रेन अब तक दुनिया के करीब 53 देशों में मिल चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसको बेहद घातक बताया है।
कैसे किया गया शोध
इस स्टडी में 63 लोग शामिल थे, जिन्हें वैक्सीन लगने के बाद भी कोरोना हुआ था। इनमें से 36 लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज लगी थी और 27 लोगों को एक ही डोज लगी थी। इनमें से 10 लोगों को कोवीशील्ड लगी थी, जबकि बाकी के 52 लोगों को कोवैक्सीन लगी थी। शोध में शामिल हुए 63 लोगों में 41 पुरुष और 22 महिलाएं थी। स्टडी में सबसे अहम बात यह सामने आई है कि इनमें से किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है। ज्यादातर लोगों को 5 से 7 दिनों तक तेज बुखार रहने के बाद वो ठीक हुए हैं।
डबल डोज लेने वाले 60% लोगों में डेल्टा वैरिएंट
शोध के अनुसार वैक्सीन की दोनों डोज लेने वाले 60% लोगों में और एक डोज लेने वाले 77% लोगों में कोरोना वायरस का डेल्टा वैरिएंट पाया गया। जांच के दौरान सभी मरीजों में वायरल लोड काफी ज्यादा था। चाहे वो किसी भी लिंग या उम्र के हों या फिर उन्होंने वैक्सीन के दोनों डोज लगवाए हों या फिर सिंगल डोज। कोवीशील्ड और कोवैक्सीन लगवाने वाले मरीजों में भी कोई फर्क नहीं था। हांलांकि, शोध की रिपोर्ट में कहा गया है कि डेल्टा वेरियेंट संक्रमण रोकने के लिहाज से वैक्सीन के असर को कम जरूर करता है फिर भी वैक्सीन कोरोना के खिलाफ सबसे कारगर हथियार है।