Vat Savitri 2021:digi desk/BHN/ ग्वालियर/ वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष की पूजा का विधान भारतीय संस्कृति की गौरव गरिमा का एक प्रतीक है और इसके द्वारा वृक्षों के औषधीय महत्व व देव स्वरूप का भी बोध होता है। बालाजी धाम काली माता मंदिर के ज्योतिषाचार्य पंडित सतीश सोनी के अनुसार भविष्य उत्तर पुराण तथा स्कंद पुराण में यह पर्व जेठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा और कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। वट सावित्री व्रत पति की लंबी आयु, सौभाग्य, संतान की प्राप्ति की कामना के लिए किया जाता है। वट को बरगद भी कहते हैं। इस वृक्ष में सकारात्मक ऊर्जा का भरपूर संचार रहता है इस के सानिध्य में रहकर जो मनोकामनाएं की जाती हैं वे पूर्ण होती हैं। शास्त्रों में पांच वट वृक्षों का महत्व अधिक है। अक्षय वट, पंचवट, बंसीवट, गया वट ,और सिद्धि वट के बारे में कहा जाता है। उक्त पांचों वटों को पवित्र वट की श्रेणी में रखा गया है। प्रयाग में अक्षयवट, नासिक में पंचवट, वृंदावन में बंसीवट, गया में गया वट ,और उज्जैन में सिद्धि वट पवित्र है पुराणों में वट वृक्ष के मूल में ब्रह्मा ,मध्य में विष्णु और अग्रभाग में शिव का वास माना गया है वट वृक्ष लंबे समय तक अक्षय रहता है इसलिए इसे अक्षय वट भी कहते हैं दार्शनिक दृष्टि से देखा जाए तो यह वृक्ष दीर्घायु का प्रतीक भी है, क्योंकि इस वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ ने बुद्धत्व को प्राप्त किया था और वह बुद्ध कहलाए थे । आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत लाभकारी होता है। वटवृक्ष वातावरण को शीतलता एव शुद्धता प्रदान करता है। साथ ही यदि आसपास वट वृक्ष अथवा बरगद का कोई पेड़ ना हो तो निराश ना हो कहीं से एक बरगद की टहनी मांग कर घर पर पूजा कर सकते हैं। यदि यह भी ना हो सके तो दीवार पर वट वृक्ष का चित्र अंकित करके पूजा कर लें पूजा आराधना में मुख्य महत्व भावना, श्रद्धा, विश्वास ,और आस्था का होता है। वास्तविक वट वृक्ष का पूजन और इस पूजन में कोई अंतर नहीं पड़ता। इस दिन मिट्टी से सावित्री ,सत्यवान और भैसे पर सवार यमराज की प्रतिमा बनाकर धूप ,चंदन ,दीपक ,फल ,रोली,केसर से पूजन करें और साथ ही सावित्री ,सत्यवान की कथा सुननी चाहिए।
सावित्री ने बुद्धि चातुर्य से बचाए थे पति के प्राण
सावित्री की निष्ठा और पति पारायण को देख यमराज ने सावित्री से कहा कि है देवी तुम धन्य हो मुससे कोई वरदान मांग लो तब सावित्री मैं अपने अंधे सास ससुर की नेत्र ज्योति और ससुर का खोया हुआ राज्य मांग लिया किंतु वापस लौटना स्वीकार ना किया। उसकी अटल पति भक्ति से प्रसन्न होकर यमराज ने जब पुनः उस से वर मांगने को कहा तो उसने सत्यवान के पुत्रों की मां बनने का बुद्धिमता पूर्ण वर मांगा। यमराज के तथास्तु कहते ही मृत्युपाश में वटवृक्ष के नीचे पड़ा हुआ सत्यवान का मृत शरीर जीवित हो उठा। तब से अखंड सौभाग्य प्राप्ति के लिए यह परंपरा आरंभ हो गई इसलिए इस व्रत में वट वृक्ष के साथ यम देव की पूजा करने का भी विधान है ।