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भारत और ताइवान के बीच आर्थिक सहयोग को और मजबूत करने के लिए एक मुक्त व्यापार समझौता करने की जरूरत

नई दिल्ली
भारत और ताइवान के बीच आर्थिक सहयोग को और मजबूत करने के लिए एक मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) करने की जरूरत है। इससे न केवल भारत को इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए चीन पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी, बल्कि उच्च तकनीक वाले क्षेत्रों में ताइवानी कंपनियों के निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा। यह कहना है ताइवान के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सू चिन शू का, जो इस समय भारत दौरे पर हैं। सू चिन शू ने भारत में अपने दौरे के बीच प्रतिष्ठित रायसीना डायलॉग में भाग लिया और वरिष्ठ भारतीय अधिकारियों से भी वार्ता की। उन्होंने कहा कि ताइवान की तकनीक और भारत की विशाल युवा जनसंख्या के संयुक्त प्रयास से भारत में उच्च श्रेणी के तकनीकी उपकरणों का उत्पादन मुमकिन हो सकता है, जिससे चीन से आयात पर निर्भरता घटेगी।

चीन पर निर्भरता कम करने की रणनीति
भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा काफी बड़ा है। वर्ष 2023-24 में भारत ने चीन से लगभग 101.75 अरब अमेरिकी डॉलर के उत्पाद आयात किए, जबकि निर्यात मात्र 16.65 अरब डॉलर का ही रहा। भारत चीन से मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, कंप्यूटर हार्डवेयर, दूरसंचार उपकरण, रसायन और दवा उद्योग के कच्चे माल का आयात करता है। ताइवान इस क्षेत्र में भारत की मदद कर सकता है, क्योंकि यह विश्व के कुल सेमीकंडक्टर उत्पादन का लगभग 70 प्रतिशत और उच्चतम तकनीक वाले चिप्स का 90 प्रतिशत से अधिक उत्पादन करता है। ये चिप्स स्मार्टफोन, ऑटोमोबाइल, डेटा सेंटर, रक्षा उपकरण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी कई अहम तकनीकों में इस्तेमाल किए जाते हैं।

मुक्त व्यापार समझौते की क्यों होगी जरूरत?
ताइवान भारत के साथ एक व्यापार समझौता करने को उत्सुक है, जिसकी पहल लगभग 12 वर्ष पहले हुई थी। शू ने बताया कि ताइवान की कंपनियां भारत में निवेश करने की इच्छुक हैं, लेकिन उच्च आयात शुल्क एक बड़ी बाधा है। अगर एक व्यापार समझौता किया जाता है, तो यह दोनों देशों के लिए लाभकारी साबित होगा। ताइवान की कई प्रमुख कंपनियां अपने उत्पादन संयंत्रों को चीन से हटाकर यूरोप, अमेरिका और भारत में ट्रांसफर करने पर विचार कर रही हैं। इसका एक कारण अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव और दूसरा ताइवान के प्रति चीन के आक्रामक रुख को लेकर चिंताएं हैं। सू चिन शू का मानना है कि ताइवान की उन्नत तकनीक और भारत की विशाल श्रमशक्ति मिलकर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भूमिका को और मजबूत कर सकती है।

भारत-ताइवान संबंधों में बढ़ती मजबूती
हाल के वर्षों में भारत और ताइवान के बीच संबंधों में सकारात्मक बदलाव आया है। दोनों देशों ने पिछले साल एक प्रवासन और गतिशीलता समझौते (Migration and Mobility Agreement) पर हस्ताक्षर किए थे, जिससे भारतीय श्रमिकों के लिए ताइवान में रोजगार के अवसर बढ़ने की संभावना है। हालांकि भारत और ताइवान के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं हैं, लेकिन व्यापार और सांस्कृतिक स्तर पर दोनों देशों का सहयोग लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 1995 में भारत ने ताइपे में ‘इंडिया-ताइपे एसोसिएशन’ (ITA) की स्थापना की थी।     यह दोनों देशों के बीच व्यापार, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसी वर्ष ताइवान ने भी दिल्ली में ‘ताइपे इकोनॉमिक एंड कल्चरल सेंटर’ की स्थापना की थी। भारत में ताइवान का कुल निवेश 4 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो चुका है, जो मुख्य रूप से जूते, मशीनरी, ऑटोमोबाइल पार्ट्स, पेट्रोकेमिकल्स और आईसीटी उत्पादों के क्षेत्रों में केंद्रित है। ताइवानी कंपनियां ‘मेक इन इंडिया’ नीति के तहत भारत में निवेश के नए अवसर तलाश रही हैं।

चीन-ताइवान विवाद और भारत की स्थिति
गौरतलब है कि चीन ताइवान को अपना एक भाग मानता है और आवश्यक होने पर बल प्रयोग कर उसे मुख्य भूमि में मिलाने की धमकी देता है। हालांकि, ताइवान खुद को स्वतंत्र राष्ट्र मानता है। भारत ने अब तक इस मुद्दे पर संतुलित रुख अपनाया है और ताइवान के साथ अपने व्यापारिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया है। भारत और ताइवान के बीच एक व्यापार समझौता न केवल दोनों देशों को आर्थिक रूप से मजबूत करेगा, बल्कि एशिया की व्यापारिक रणनीतियों में भी एक नए युग की शुरुआत कर सकता है।

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