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Coronavirus: कोरोना ने रोका बाकी बीमारियों के इलाज का रास्ता, गंभीर हो रहे मरीज

Coronavirus in Indore:digi desk/BHN/इंदौर/ कोरोना संक्रमण के चलते अस्पतालों में बाकी बीमारियों का इलाज मुश्किल हो गया है। भर्ती करने के पहले अस्पताल वाले कोरोना जांच करवाते हैं। कोरोना की रिपोर्ट आने में 24 घंटे लगते हैं। इतना समय किसी भी मरीज की स्थिति बिगड़ने के लिए काफी रहता है। यहां तक कि ग्रीन श्रेणी वाले अस्पताल भी निगेटिव रिपोर्ट आने के बाद ही अपने दरवाजे खोलते हैं। नए नियमों ने इलाज की राह जटिल बना दी है। कई अस्पताल के चक्कर लगाने के बाद भी मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है। मजबूरन घर पर रहना पड़ रहा है। ऐसे में तबीयत बिगड़ने लगती है।

घर भी नहीं आ रहे डाक्टर : कोरोनाकाल में अन्य बीमारियों से पीड़ित मरीजों की स्थिति अच्छी नहीं है। एक तरफ अस्पताल में आसानी से भर्ती नहीं किया जा रहा, दूसरी तरफ डाक्टर भी मरीजों को देखने घर जाने से बच रहे हैं। संक्रमण की वजह से ये डाक्टर भी वीडियो काल पर इलाज कर रहे हैं।

ऐसी परिस्थितियों में कई बार मरीजों को घर में रखकर इलाज करना पड़ता है। कई बार हालात बिगड़ने पर घरवाले अस्पताल भी नहीं ले जा पाते हैं।

घर पर हो रहा इलाज : अस्पताल में भर्ती नहीं किए जाने से मरीज के स्वजन ने घर पर इलाज शुरू कर दिया है। वैभव सोनी के माता-पिता दोनों बीमार रहते हैं। शुगर टेस्ट कट, बीपी मीटर, आक्सीमीटर, नैबुलाइजर, वेट मशीन सहित अन्य उपकरण तो खरीद रखे हैं। यहां तक कि घर पर सलाइन लगाने की व्यवस्था भी है। दो लैब से समय-समय पर उनके टेस्ट भी करवाते हैं, ताकि कोरोनाकाल में अस्पताल जाने से बचा जा सके।

नहीं है जानकारी : कोरोना महामारी के इलाज के लिए जिला प्रशासन ने 100 से ज्यादा अस्पताल चिह्रित कर रखे हैं। प्रशासन ने ग्रीन श्रेणी वाले भी अस्पताल चिह्रित कर रखे हैं, जिनमें बाकी बीमारियों का इलाज हो सके। मगर ज्यादातर लोगों को इन अस्पतालों की जानकारी नहीं है। इसी कारण कई बार इलाज के लिए लोगों को अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ते हैं।

केस-1 : बजरंग नगर निवासी 90 वर्षीय भीमराव केंदुरलकर की 7 अप्रैल को तबीयत बिगड़ी। बेटे आशुतोष ने बताया कि कुछ साल से पिता को लकवा था। तबीयत बिगड़ने पर अस्पताल में भर्ती करवाने की सोची। ग्रीन श्रेणी के अस्पतालों में संपर्क किया। तीन अस्पतालों में बेड नहीं थे। कुछ अस्पतालों ने भर्ती से पहले कोरोना निगेटिव रिपोर्ट मांगी। चूंकि न तो संक्रमण के लक्षण थे, न कोरोना से तबीयत बिगड़ी थी। फिर भी फैमिली डाक्टर से संपर्क किया। वीडियो काल पर देखने के बाद उन्होंने कुछ टेस्ट लिखे और दवाइयां बताई। दो दिन अस्पताल ढूंढते रहे और 10 अप्रैल को पिता को खो दिया।

केस-2 : 82 वर्षीय जया जोशी को लो बीपी और डायबिटीज की शिकायत थी। बेटे अनिमेश ने बताया कि 17 अप्रैल को तबीयत बिगड़ी तो आसपास के अस्पतालों में ले गए। मगर कहीं भर्ती नहीं किया गया। उन्होंने कोरोना निगेटिव की रिपोर्ट मांगी। कहा कि ये संक्रमित नहीं हैं, बीपी या शुगर की परेशानी है। डाक्टर ने बाहर आकर देखा, कुछ दवाइयां दीं, लेकिन कोरोना रिपोर्ट के पहले भर्ती नहीं करना बताया। फिर कोरोना की जांच करवाई। निगेटिव आने पर ही अस्पताल ने भर्ती किया।

केस-3 : कालानी नगर निवासी गोपाल अग्रवाल की मां की शुगर बढ़ गई। स्वजन उन्हें समीप के अस्पताल ले गए तो डाक्टरों ने कहा कोरोना की रिपोर्ट के बगैर भर्ती नहीं करेंगे। वे तीन अस्पतालों में ले गए, सभी ने इन्कार कर दिया। आखिरकार दो दिन बाद मां चल बसीं।

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