Coronavirus MP:digi desk/BHN/ भोपाल/कोरोना संक्रमण से पूरे प्रदेश में गहराता जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से हर दिन अस्पतालों में बिस्तर, ऑक्सीजन की आपूर्ति और इंजेक्शन की उपलब्धता को लेकर दावे किए जा रहे हैं। हालांकि प्रतिदिन प्रदेश में हो रही घटनाएं बता रही हैं कि सुविधाओं के दावों में दम नहीं है। हेल्पलाइन पर जिन अस्पतालों में बिस्तरों की उपलब्धता बताई जा रही है, वहां बिस्तर नहीं हैं। ऑक्सीजन की उपलब्धता पर्याप्त है तो इसकी कमी से लोगों की मौत क्यों हो रही है? कुछ स्थानों पर लोगों को व्यक्तिगत स्तर पर इसकी व्यवस्था करनी पड़ रही है।
रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी इसकी उपलब्धता पर सवाल उठा रही है। लोग स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर परेशान हैं और विभाग दावों में व्यस्त है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जिन व्यवस्थाओं के निर्देश दे रहे हैं, उनके पालन में भी लापरवाही बरती जा रही है।
दावे और उनकी हकीकत
रेमडेसिविर इंजेक्शन
मुख्यमंत्री ने रेमडेसिविर इंजेक्शन के वितरण की व्यवस्था को लेकर घोषणा की थी कि सरकारी और निजी अस्पतालों को इंजेक्शन सीधे उपलब्ध कराए जाएंगे। इनकी निगरानी ड्रग इंस्पेक्टर करेंगे। अधिकारी यह व्यवस्था नहीं बना सके और स्थिति यह है कि किस अस्पताल को कितने इंजेक्शन दिए जा रहे हैं, इसका पता ही नहीं चल पा रहा है। लोग एक-एक इंजेक्शन के लिए परेशान हो रहे हैं और जमकर कालाबाजारी हो रही है।
अस्पतालों में बिस्तर नहीं
इसकी उपलब्धता के लिए राज्य सरकार ने हेल्पलाइन 1075 और एक पोर्टल शुरू किया है, लेकिन यहां से मिलने वाली जानकारी मरीजों के लिए परेशानी ही बढ़ा रही है। हेल्पलाइन से जिस अस्पताल में बिस्तर खाली होने की जानकारी दी जाती है, वहां पहुंचने पर अस्पताल बिस्तर खाली नहीं होने की बात कहकर भर्ती करने से इन्कार कर देते हैं। एम्स भोपाल में कोविड सेंटर शुरू करने की बात कही गई थी, लेकिन यह सुविधा अभी तक लोगों को नहीं मिल सकी है।
मनमाना शुल्क वसूल रहे निजी अस्पताल
यह तय हुआ था कि निजी अस्पताल इलाज की दरें सार्वजनिक करेंगे। इस पर अमल नहीं हो सका है। निजी अस्पताल सामान्य मरीजों से भी 20 से 50 हजार रुपये प्रतिदिन तक वसूल रहे हैं। ऑक्सीजन और वेंटिलेटर की आवश्यकता वाले मरीजों के लिए यह राशि लाखों रुपये में जा रही है।
ऑक्सीजन की उपलब्धता
आक्सीजन की कमी से कई जगह मौतें होने की सूचनाएं सार्वजनिक हैं। विभाग हर दिन मांग से अधिक उपलब्धता के दावे करता है। ऐसे में जनप्रतिनिधियों का अपने शहर में ऑक्सीजन के इंतजाम करना साबित करता है कि संकट काफी अधिक है।
जांच रिपोर्ट मिलने में देरी
कोरोना की जांच रिपोर्ट 24 घंटे में देने का दावा किया गया था। इसका उद्देश्य यह था कि संक्रमितों की पहचान कर उन्हें तत्काल उपचार उपलब्ध कराया जाए। यह जांच रिपोर्ट कई लोगों को दो से तीन दिन में भी नहीं मिल रही है। परिणाम यह है कि संक्रमित सामान्य मरीज की तरह अन्य लोगों के संपर्क में आकर दूसरों को संक्रमित कर रहा है।
श्रेय लेने में अधिकारी आगे, नाकामी डाक्टरों के सिर
अधिकारियों ने बीते कुछ सालों में स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्थाओं में बदलाव कर दिक्क्तें बढ़ा दी हैं। कई डाक्टरों का कहना है कि इस संकट में सारा दोष डाक्टरों के सिर मढ़ दिया गया है, जबकि अधिकारी सिर्फ श्रेय लेने के दौरान नजर आते हैं। अस्पताल के अंदर की जिम्मेदारी डाक्टर की है। वे इलाज भी कर रहे हैं, लेकिन अस्पताल के कैंपस में व्यवस्थाओं को जुटाना तो अधिकारियों का काम है।
वहीं, स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़े लोगों का कहना है कि दवा खरीदी से लेकर उपकरण और आर्थिक मामलों की केंद्रीयकृत व्यवस्था से विपरीत हालात से निपटने में दिक्कत हो रही है। पहले सिविल सर्जन या मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी के पास दवाइयों की खरीद के लिए मद होते थे। अनुभव के आधार पर समय विशेष में होने वाली बीमारियों के लिए दवा की खरीद कर ली जाती थी। अब यह व्यवस्था बंद कर दी गई है। इससे संकट आने पर डाक्टरों को अधिकारियों पर निर्भर रहना पड़ता है।