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त्याग :खुद अपमान का विष पीकर कैकेई ने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम बना दिया

   पंडित योगेश गौतम

रामायण में माता कैकेई को हम बहुत निकृष्ट भाव से देखते है! लेकिन आज जरूरत है माता कैकेई के उस त्याग को स्मरण करने की, जो वो खुद विष का प्याला पीकर लोकहित के लिए अमृत उपलब्ध कराया।
 कैकेई चक्रवर्ती सम्राट महराज दशरथ की दूसरी रानी थी अर्थात माता कौशल्या के बाद माता कैकेई का नाम आता है जो महात्मा भरत की माँ और भगवान राम की सबसे चहेती माँ थी।
जो किसी महात्मा की माँ और भगवान की इतनी चहेती माँ हो वह कलंकित कैसे हो सकती हैं ?.
त्रेता युग में जब राक्षशो का प्रकोप इतना बढ़ गया कि धर्म के कार्य बाधित होने लगे और इंद्रलोक में जब देवतावो को अपनी अस्मिता खतरे में दिखने लगी तो इंद्रदेव, देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे और उन्होंने अपने बनाये हुए योजना से उनको अवगत कराया। देवगुरु बृहस्पति विश्मित भाव से …..देवराज इंद्र इस कार्य को कौन करेगा…यह विषपान कौन करेगा..?
देवराज बहुत सशंकित भाव से …..”यह कार्य सिर्फ माता कैकेई ही कर सकती है वही कलंक रूपी विष पीकर राक्षशो से इस धरा को उद्धार करा सकती हैं”………
देवगुरु बृहस्पति क्रोध भाव से…..देवराज इंद्र स्मरण रखो वो भरत की माँ जरूर है लेकिन वो भगवान राम को भरत से ज्यादा प्यार करती है वो इस कार्य को कभी नहीं करेगी और तुम अपने निजी स्वार्थ के लिए माता कैकेई को कलंकित करना चाहते हो। तनिक सोचो भगवान राम को तो सर्वविदित है लेकिन इतिहास उन्हें किस भाव से देखेगा..!
देवराज इंद्र सहम कर…… गुरुदेव यह मेरा निजी स्वार्थ बस नही हैं इन्द्रासन के अलावा समस्त देवी देवता, ऋषि मुनि और मानव सब राक्षशो के प्रकोप से बचे नहीं……और जैसे आप जानते ही है कि भगवान राम का जन्म भी इसी कार्य के निर्वहन और मर्यादा स्थापित करने लिए हुआ है …….

देवगुरु वृहस्पति प्रश्नवाचक भाव से……” यह कैसी मर्यादा देवराज..? आप तो एक माता को कलंकित करने का प्रयास कर रहे है, माता कैकेई को इतिहास माफ् नही कर पायेगा वह उनका त्याग याद नही करेगा जो लोक कल्याण के लिए वो करेगी….क्यों न माता कौशल्या भगवान राम को आदेशित करे वन गमन और राक्षशो के संघार के लिए..?

देवराज इंद्र प्रतिउत्तर भाव से “ सुझाव आपका सही है लेकिन भगवान श्रीराम चंद्र का जन्म नर रूप में हुआ है और मर्यादा पुरुषोत्तम को मर्यादा का पाठ भी तो पढ़ाकर जाना है इससे महात्मा भरत का राम अनुरक्त प्रदर्शित नही हो पाएगा।…….यदि माता कौशल्या राक्षसों के वध के लिए श्रीराम को आदेशित करेंगी तो श्रीराम का रूप समस्त लोक में भगवान रूप में प्रदर्शित हो जाएगा…..जैसे आप जानते है जब भगवान राम माता कैशल्या के सामने प्राकट्य हुए तब माता कौशल्या ने कहा था आप नर रूप में और बच्चे के रूप में शिशु लीला करके मुझे माता होने का सुख प्रदान करो”……
देवगुरु वृहस्पति गहरी सोंच भाव से: “ लेकिन इस कार्य के निर्वहन में हमारा साथ कौन देगा”……..
गहरी सांस के साथ माता सरस्वती का नाम देवगुरु के दिमाग मे आ चुका था और उन्होंने देवराज को पथ प्रदर्शित करते हुए कहा….
देवगुरु: देवराज आप माता सरस्वती के पास जाइये और उनसे इस कार्य के लिए सहायता मांगिये…..
देवराज: प्रणाम करते हुए जैसी आज्ञा गुरुदेव!

देवराज इंद्र अपने साथ सभी देवों को लेकर माता सरस्वती के पास पहुंचे और प्रणाम करते हुए अपने आगमन का कारण व्यक्त किया।
देवराज इंद्र की बातें सुनते ही माता सरस्वती गुस्से से लाल हो कर इंद्र को मना करते हुए भाव से बोली…..
माता सरस्वती: देवराज आप मुझे किस पाप की सहभागिनी बनाना चाहते हो, मैं कैसे माता कैकेई को इस कार्य के लिए राजी कर सकती हूँ! माना आपका मत लोकहित में है लेकिन जब कैकेई से इतिहास प्रश्न पूँछेगा की ‘पुत्र कुपुत्र हो सकता है लेकिन माता कैसे कुमाता हो गयी’ तो कैकेयी क्या जवाब देगी……. यह कार्य मुझसे नही हो पाएगा……क्या कैकेई सबको बता पाएगी की यह मैंने लोकहित के लिए किया था।

देवराज इंद्र: माता आप ऐसा न कहे, आप खुद जानती है कि इसी में लोकहित है और प्रभु श्रीराम की भी यही इच्छा है लेकिन माता मैं एक चीज और चाहता हूँ कि माता जानकी भी श्रीराम के साथ वन को जाय….यह कार्य माता सिर्फ आप ही कर सकती है क्योंकि आप समस्त ब्रम्हांड की माता है आप तो हमेशा से लोकहित का ही कार्य कर रही हैं सबको ज्ञान देती है….ज्ञान से विरक्ति और विरक्ति से प्रभू………!

माता सरस्वती : माता चीख उठी देवराज…….जो कैकेई सीता को इतना मानती हो कि उनको मुह दिखायी कनक ( स्वर्ण) भवन दे दिया हो वह कैसे बोल पायेंगी सीता तुम वन को जाओ…..
लगता है इन्द्रराज आप कुछ ज्यादा ही लोभवश हो गए है कहीं ऐसा न हो कि कैकेई इस विष पीने को तैयार भी हो तो सीता के कारण मना कर दे अतएव मुझसे ऐसा मत बुलवाओ ……सीताजी वैसे भी पतिव्रता है यदि श्रीराम वन को जाएंगे तो सीताजी जरूर जाएंगी।

माता सरस्वती को भी यह पता था कि बिना राम वनवास के लोकहित नही है अतः अब कैकेई को यह कलंक रूपी विष पीना ही पड़ेगा और रामराज्य स्थापना में मजबूत सहभागिनी बनाना पड़ेगा।

और ऐसा ही हुआ कैकेई को सब पता था कि श्रीराम वनवास के बाद लोकहित तो जरूर होगा लेकिन मुझे जितने उत्तर देने पड़ेंगे शायद इस ब्रम्हांड में किसी माता या पत्नी को कभी नही देने पड़ेंगे, फिर भी उन्होंने भरत की माता के बजाय जगत माता बनना उचित समझा और अपने आप को जन्मजन्मांतर के लिए कलंकित कर लिया।

 

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