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MP: निर्भया कांड की भयावहता से नहीं सीखा सबक, हाई कोर्ट ने कहा- नाबालिग अपराधियों के साथ नरमी बरतना दुर्भाग्यपूर्ण

  1. मप्र हाई कोर्ट ने किशोर अपराधियों को लेकर की सख्त टिप्पणी
  2. देश में किशोर अपराधियों के साथ किया जा है रहा नरम व्यवहार
  3. निर्भया कांड की भयावहता से भी किसी ने कोई सबक नहीं सीखा

इंदौर।  निर्भया कांड की भयावहता से भी किसी ने कोई सबक नहीं सीखा। बहुत दुखद बात है कि देश में किशोरों के साथ बहुत नरम व्यवहार किया जा रहा है। मासूम के साथ दुष्कर्म करने वाला दुष्कर्मी फरार है। शायद वह सड़क के किसी अंधेरे कोने में एक और शिकार की तलाश में छुपा हुआ है। उसे रोकने वाला कोई नहीं है। कठोरतम कानून को लेकर बार-बार आवाज उठती रही है, निराशा की बात है कि निर्भया कांड के बावजूद इसे लेकर कुछ नहीं हुआ।

इस तल्ख टिप्पणी के साथ मप्र हाई कोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने चार वर्षीय मासूम से दुष्कर्म करने वाले दुष्कर्मी की सजा के खिलाफ दायर अपील निरस्त कर दी। कोर्ट ने नाबालिग अपराधियों के मामले में देश में नरम कानून को लेकर अफसोस जताया है।

यह है पूरा मामला

29 दिसंबर 2017 को वारदात के दिन दुष्कर्मी की आयु 17 वर्ष 3 माह 27 दिन थी। विचारण न्यायालय ने 8 मई 2019 को इस मामले में फैसला सुनाते हुए दुष्कर्मी को 10 वर्ष कठोर कारावास की सजा सुनाते हुए सुधारगृह भेज दिया था। उसे 21 वर्ष तक की आयु पूरी करने तक वहां रखने और इसके बाद जेल शिफ्ट किया जाना था, लेकिन 13 नवंबर 2029 को ही वह सुधारगृह से भाग गया।

उसने जिला न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में अपील दायर की थी। इस अपील को निरस्त करते हुए न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर ने कहा कि यह टिप्पणी करते हुए दुख हो रहा है कि इस देश में नाबालिग अपराधियों के साथ बहुत नरमी बरती जा रही है। यह पीड़ितों का दुर्भाग्य है कि निर्भया कांड की भयावहता से भी किसी ने कोई सबक नहीं सीखा।

जिला न्यायालय का फैसला सही

दुष्कर्मी ने यह कहते हुए जिला न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी कि किराए के विवाद के कारण मामला बड़ा हो गया है, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की मां खुद घटना के तुरंत बाद मौके पर पहुंची थीं। वहां उन्होंने चार वर्षीय बेटी को बेहोश पाया था। उसके गुप्तांगों से रक्त बह रहा था। दुष्कर्मी पीड़िता के पास खड़ा था। ऐसी स्थिति में दुष्कर्मी के खिलाफ झूठा प्रकरण दर्ज कराने और असली आरोपित को बचाने का कोई कारण नहीं है।

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