- हर साल 30 लाख मीट्रिक टन से अधिक लगता है गेहूं व चावल
- इस वर्ष 48.38 लाख टन खरीदा गया है समर्थन मूल्य पर गेहूं
- विकेंद्रीकृत प्रणाली के तहत राज्य की एजेंसी गेहूं व धान खरीदेगी
भोपाल। मध्य प्रदेश से केंद्र सरकार को सेंट्रल पूल में दिए जाने वाले गेहूं और चावल की व्यवस्था में राज्य सरकार ने परिवर्तन करने का निर्णय लिया है। अब पहले जिले में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत आवश्यक खाद्यान्न को आरक्षित किया जाएगा। इसके बाद जो गेहूं और चावल बचेगा, उसे सेंट्रल पूल के लिए भारतीय खाद्य निगम को दिया जाएगा।
बचेगा परिवहन का खर्चा
इससे आवश्यकता होने पर दूसरे जिले से खाद्यान्न परिवहन नहीं करना पड़ेगा, जिससे परिवहन व्यय बचेगा। प्रदेश में एक करोड़ 26 लाख 73 हजार 417 राशन कार्ड और पांच करोड़ से अधिक पीडीएस उपभोक्ता हैं। इन्हें खाद्य सुरक्षा कानून के अंतर्गत वर्षभर में लगभग तीस लाख मीट्रिक टन गेहूं और चावल वितरित किया जाता है। इस बार 48 लाख 38 हजार मीट्रिक टन गेहूं का उपार्जन समर्थन मूल्य पर किया गया है।
चूंकि, प्रदेश में विकेंद्रीकृत प्रणाली यानी केंद्र सरकार के लिए राज्य की एजेंसी गेहूं और धान खरीदती हैं, इसलिए सेंट्रल पूल में परिदान किया जाता है। यहां से उन राज्यों को गेहूं भेजा जाता है, जहां इसकी आवश्यकता होती है लेकिन इस बार व्यवस्था में परिवर्तन किया गया है।
खाद्य, नागरिक आपूर्ति विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्रत्येक जिले में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की आवश्यकता का आकलन कराया गया है। जिन जिलों में वर्षभर की आवश्यकता के बराबर या थोड़ा अधिक गेहूं खरीदा गया है, वहां से सेंट्रल पूल में इसे नहीं दिया जाएगा। इससे दूसरे जिले से परिवहन करके गेहूं लाने की स्थिति ही नहीं बनेगी।
पहले ही हो जाएगा गेहूं का भंडारण
वर्षभर में उपभोक्ताओं के लिए आवश्यक गेहूं का भंडार जिले में ही हो जाएगा। साथ ही जिन जिलों में अधिक गेहूं का भंडार है, वहां से परिदान प्राथमिकता के आधार पर होगा। इससे भंडारण में होने वाला व्यय भी बचेगा। प्रतिवर्ष 23 लाख टन से अधिक गेहूं और सात लाख टन से अधिक चावल पीडीएस में लगता है। इसके अतिरिक्त मध्याह्न भोजन योजना और अनुसूचित जाति-जनजाति छात्रावास के लिए गेहूं और चावल लगता है।