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National: नारायण साकार के पीछे है ये पॉलिटिक्स..! आखिर क्यों नहीं कोई नेता खुलकर ले रहा बाबा को निशाने पर

National hathras stampede incident narayan sakar hari baba political forces leaders refraining from talking news and up: digi desk/BHN/ हाथरस/ नारायण साकार उर्फ भोले बाबा के कार्यक्रम में मची भगदड़ से हुई सवा सौ मौतों के बाद भी नारायण साकार का नाम कोई राजनीतिक दल खुलकर नहीं ले रहा है। मामले में जिस तरीके से एफआईआर दर्ज हुई और धरपकड़ जारी हुई, उसमें भी नारायण साकार और भोले बाबा का कोई जिक्र नहीं है। दरअसल जानकारों का कहना है कि नारायण साकार उर्फ भोले बाबा के मामले में सियासी दलों के खुलकर न बोलने के पीछे ‘दलितों की पॉलिटिक्स’ और पिछड़ों से लेकर अतिपिछड़ों के वोटों का मामला सामने आ रहा है। कहा यही जा रहा है कि बाबा के भक्तों में सबसे ज्यादा संख्या दलितों समेत पिछड़ों और अति पिछड़ों की है। यही वजह है कि कोई भी राजनीतिक दल खुलकर बाबा को निशाने पर नहीं ले रहा है।

दरअसल, मंगलवार को हाथरस के जिस मुगलगढ़ी इलाके में भगदड़ मची और करीब सवा सौ लोगों की मौत हो गई, वहां पर नारायण साकार का सत्संग चल रहा था। घटना के बाद समूचे देश में नारायण साकार उर्फ भोले बाबा के बारे में चर्चाएं शुरू हो गईं। राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र यादव बताते हैं कि कहने को तो बाबा का बड़ा नेटवर्क है और बहुत रसूख भी है। लेकिन बाबा का यह नेटवर्क उन अन्य बाबाओं की तरह नहीं दिखाई देता है, जैसा आजकल के बाबाओं का होता है। उपेंद्र कहते हैं कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड के इलाकों में बाबा के भक्तों की संख्या को उनके कार्यक्रमों में देखकर अंदाजा लगा सकते हैं कि लोग किस तरह से बाबा के लिए खड़े रहते हैं। लेकिन बाबा के आश्रम की ओर से जारी किए गए निर्देशों के मुताबिक न तो उनके बैनर पोस्टर, झंडे और होर्डिंग्स लगाए जाते हैं और न ही बेवजह उनका बड़े स्तर पर कोई प्रचार किया जाता है। बाबा का न तो कोई यूट्यूब चैनल है और न ही बाबा सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। उपेंद्र कहते हैं कि यही वजह है कि जब हाथरस में घटना हुई, तो बड़े-बड़े लोगों को बाबा के बारे में जानकारी ही नहीं थी कि आखिर यह है कौन। हालांकि वह कहते हैं कि सियासत करने वाले सभी दलों को बाबा की ताकत का भरपूर अंदाजा है।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि नारायण साकार का वर्चस्व सबसे ज्यादा दलित, पिछड़ों और अतिपिछड़ों में है। इस बात की पूरी जानकारी उत्तर प्रदेश की सभी सियासत करने वाले राजनीतिक दलों को बखूबी है। यही वजह है कि बड़े-बड़े राजनेताओं से लेकर अधिकारी भी बाबा के आश्रम से लेकर कार्यक्रमों में हाजिरी लगाते थे। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सीपी ओझा कहते हैं कि सियासी जमीन पर जातिगत समीकरणों के साथ-साथ बाबा का बेहद मजबूत कनेक्शन है। ओझा कहते हैं, जिन जातिगत समीकरणों के आधार पर राजनीतिक दल अपने नफा नुकसान का गणित लगाते हैं, बाबा का सिक्का उन्हीं जातियों में मजबूती से जमा हुआ है। यही वजह है कि ज्यादातर राजनीतिक दल और राजनेता बाबा की ताकत को पहचान कर चुनाव में उनके साथ खुद को जोड़ते भी थे। ओझा कहते हैं कि बाबा का रसूख भी इतना है कि कि अगर बाबा अपने अनुयायियों से जो कह दें, उसे उनके भक्त बाबा का आदेश मानकर पूरा करते थे। ऐसे में बाबा की अहमियत कितनी महत्वपूर्ण हो जाती है, यह बात जब एक सामान्य व्यक्ति की समझ में आ रही है तो सियासत करने वालों के लिए यह समझना बिल्कुल मुश्किल नहीं है। उनका मानना है कि बाबा को लेकर जिस तरीके से अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेताओं की ओर से बयानबाजी हो रही है वह दलित पिछड़े और अति पिछड़े वोटों को ध्यान में रखकर ही की जा रही है।

इस घटना के बाद जब हंगामा मचना शुरू हुआ, तो बाबा निशाने पर आ गया। लेकिन किसी भी राजनीतिक दल ने इस पूरे घटनाक्रम में बाबा को निशाने पर नहीं लिया। सियासी गलियारों में कहा यही जा रहा है कि बाबा को निशाने पर लेने का मतलब है उनके भक्तों को नाराज करना है। दरअसल इस पूरे घटनाक्रम में जो पीड़ित अनुयाई भी कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे, वे लोग भी इस पूरे मामले में नारायण साकार उर्फ भोले बाबा को दोषी नहीं बता रहे हैं। राजनीतिक जानकार और वरिष्ठ पत्रकार सीपी ओझा कहते हैं कि ऐसी दशा में एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि बाबा के भक्तों में बाबा को लेकर नाराजगी नहीं है। वह कहते हैं कि ऐसे माहौल में किसी भी राजनीतिक दल की ओर से बाबा का खुलकर विरोध करना या उनकी गिरफ्तारी के लिए आंदोलन या प्रदर्शन करना एक बड़े वोट बैंक को खुद से दूर करने जैसा होगा। क्योंकि उनके भक्तों में दलित, पिछड़ों और अति पिछड़ों की संख्या सबसे ज्यादा है और यही वह लोग हैं जो सियासत की धुरी में राजनीतिक दलों की सियासी दशा और दिशाएं तय करते हैं। यही वजह है कि इस मामले में सियासी दल सोच समझकर बयान बाजी भी कर रहे हैं।

सियासी जानकारों का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी की सरकार में बाबा को मिला प्रोटोकॉल इस बात की तस्दीक करता है कि सियासी नजरिए से वह कितना मुफीद था। वरिष्ठ पत्रकार बृजेंद्र शुक्ला कहते हैं कि जाटव समुदाय से आने वाले इस बाबा का अपना एक बड़ा नेटवर्क है। बाबा को अपनी इस ताकत का अंदाजा भी है। यही वजह है कि वह सियासी दलों के साथ अपना मजबूत नेटवर्क बनाए रखता है। बृजेंद्र शुक्ला कहते हैं कि बाबा की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बसपा की सरकार में लाल बत्ती से लेकर एस्कॉर्ट और पायलट वाहनों समेत पूरा प्रोटोकॉल मिला करता था। शुक्ल कहते हैं कि जब इस तरीके का सियासी गठजोड़ बाबाओं के साथ होता है, तो उसका राजनीतिक फायदा भी राजनीतिक दलों को मिलता है। यही वजह है कि इतने बड़े घटनाक्रम के बाद भी कोई भी राजनीतिक दल खुलकर बाबा के खिलाफ नहीं बोल पा रहा है।

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