पटना
जनता दल यूनाइटेड (JDU) कार्यकारिणी की बैठक में केंद्र के सामने बड़ी मांग रख दी गई है। नीतीश कुमार की अगुआई में हुई बैठक में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग की गई है। बता दें कि यह बैठक नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में आयोजित की गई थी जिसमें संजय झा को जेडीयू का कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाने का फैसला किया गया है।
जेडीयू की इस बैठक में इस बात पर जोर दिया गया कि बिहार को लंबे समय से विशेष राज्य के दर्जे का इंतजार है। राज्य के आर्थिक विकास के लिए यह बेहद जरूरी हो गया है। बैठक के बाद मीडिया से बात करते हुए एक सीनियर जेडीयू नेता ने कहा, बिहार के लिए विशेष राज्य के दर्जे की मांग कोई नई बात नहीं है। बिहार की चुनौतियों से निपटने और विकास के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए यह मांग लंबे समय से की जाती रही है।
आरक्षण को लेकर मांगा आश्वासन
कार्यकारिणी की बैठक में पास किए गए प्रस्ताव में बिहार राज्य के आरक्षण को बचाने की भी बात कही गई है। हाल ही में राज्य में आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 65 फीदी किया गया था। जेडीयू के प्रस्ताव में कहा गया है कि यह कोटा संविधान के नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाए ताकि इसे जूडिशल स्क्रूटनी से बचाया जा सके और इसे लागू करने में दिक्कत का सामना ना करना पड़े।
वहीं पार्टी ने हाल ही में लीक हुए नीट के पेपर को लेकर कहा है कि इसकी ठीक से जांच होनी चाहिए। इस तरह से परीक्षा में गड़बड़ी होने से छात्रों का विश्वास डगमगाता है इसलिए परीक्षा को निष्पक्षता के साथ कराया जाए। जेडीयू कार्यकारिणी की इस बैठक में नीतीश कुमार के अलावा केंद्रीय मंत्री ललन सिंह, केसी त्यागी, विजय कुमार चौधरी, देवेश चंद्र ठाकुर समेत पार्टी के कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे।
विशेष राज्य बनने से क्या होगा फायदा
बता दें कि संविधान में किसी राज्य को विशेष राज्य बनाने का कोई प्रावधान नहीं है। हालांकि 1969 में गाडगिल कमेटी की सिफारिशों के तहत विशेष राज्य की बात अस्तित्व में आई। जम्मू-कश्मीर, नगालेंड और असम को 1969 में विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था। इस कैटिगरी में आने वाले राज्यों को केंद्री की सरकार से सहायता में प्राथमिकता और टैक्स मे छूट दी जाती है। एक्साइज ड्यूटी में भी विशेष छूट का प्रावधान किया गया है। यह दर्जा उन राज्यों को दिया जाता है जो कि दुर्गभ भौगोलिक परिस्थिति, कम जनसंख्या घनत्व, अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास, पिछड़े या फिर गरीब होते हैं। फिलहाल भारत में 11 राज्यों को यह दर्जा मिला हुआ है। इसमें असम, नगालैंड, मणिपुर, तेलंगाना, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, सिक्किम और मेघालय शामिल हैं।