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राजस्थान से लोकसभा चुनाव में 11 सीट गंवाने के बाद एक और चुनौती, उपचुनाव में सीएम भजनलाल दिला पाएंगे जीत?

दौसा.

राजस्थान में आगामी छह महीनों में पांच विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं। विधायक से सांसद बने जनप्रतिनिधियों की सीटों पर नए चुनाव होंगे। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के लिए यह दूसरी अग्निपरीक्षा होगी। लोकसभा चुनाव 2024 में राजस्थान में पांच सीटें ऐसी रहीं, जिन पर विधायकों ने सांसद का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। दौसा से विधायक मुरारीलाल मीणा दौसा से ही सांसद बने।

झुंझुनूं से विधायक बृजेन्द्र ओला झुंझुनूं से सांसद बने। खींवसर से विधायक हनुमान बेनीवाल नागौर से सांसद बने। देवली-उनियारा से विधायक हरीश चौधरी टोंक-सवाईमाधोपुर से सांसद बने और चौरासी से विधायक राजकुमार रोत बांसवाड़ा-डूंगरपुर से सांसद बने। इन पांच विधानसभा सीट दौसा, झुंझुनूं, खींवसर, देवली-उनियारा और चौरासी पर अगले छह महीने में उपचुनाव होंगे। भाजपा फिलहाल इस बात पर मंथन कर रही है कि उसका मिशन 25 अभियान कैसे असफल हो गया। प्रदेश में भाजपा की सरकार होने के बावजूद लोकसभा में उसे बड़ा नुकसान हुआ है। राजनीति के जानकार कहते हैं कि जब पार्टी विपक्ष में होती है तो संगठन के मुखिया के नाते प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी हार जीत पर होती है। वहीं, जब पार्टी सत्ता में होती है तो हार-जीत की जिम्मेदारी सरकार के मुखिया यानी मुख्यमंत्री की होती है। इस बार राजस्थान में भाजपा की सरकार थी और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा प्रदेश के मुखिया थे। ऐसे में चुनाव परिणाम की हार-जीत का श्रेय भी मुख्यमंत्री के खाते में जाएगा।

दूसरी बड़ी अग्निपरीक्षा
पहली परीक्षा में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ज्यादा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए, लेकिन अब उनके सामने अगले छह महीनों में दूसरी और बड़ी अग्निपरीक्षा उपचुनाव के रूप में आने वाली है। जिन सीटों पर उपचुनाव होंगे, उन सभी सीटों पर भाजपा का कमल खिले ये जिम्मेदारी उनके कंधों पर ही होगी। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के लिए ये चुनौती इसलिए भी बड़ी होगी, क्योंकि जिन सीटों पर उपचुनाव होंगे, उनमें से किसी भी सीट पर भाजपा का विधायक नहीं है। इनमें से तीन सीटों पर कांग्रेस और दो सीटों पर आरएलपी और बाप पार्टी के विधायक हैं।

भाजपा के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण
इन उपचुनावों में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को साबित करना होगा कि वे पार्टी के लिए महत्वपूर्ण हैं और राज्य में भाजपा की पकड़ मजबूत कर सकते हैं। ये उपचुनाव भाजपा के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण होंगे और पार्टी की रणनीति और नेतृत्व की क्षमता की परीक्षा भी होगी।

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