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तीन चरणों के मतदान के बाद शत प्रतिशत की गारंटी वाली आशा को कुछ आघात-सा लगा, तो इसलिए पटना में डेरा डाल रहे मोदी

पटना
पिछली बार लोकसभा की 40 में से 39 सीटें राजग की झोली में डाल देने वाले बिहार को लेकर भाजपा इस बार पूरी तरह आश्वस्त भी नहीं। राजनीति में वैसे भी किसी स्थिति-परिस्थिति की गारंटी नहीं होती। इस बार तो तीन चरणों के मतदान के बाद शत प्रतिशत की गारंटी वाली आशा को कुछ आघात-सा लगा है। विरोधियों के साथ भाजपा के अंदरुनी सूत्र भी ऐसा ही बता रहे हैं। यही कारण है कि 12 मई को रोड-शो के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पटना में ही रात्रि विश्राम का निर्णय लिया है। उसके अगले दिन 13 मई को तीन लोकसभा क्षेत्रों (सारण, हाजीपुर, मुजफ्फरपुर) में जनसभा कर वे बिहार विजय के अपने संकल्प पर आगे बढ़ने का प्रयत्न करेंगे। 13 मई को चौथे चरण के तहत पांच संसदीय क्षेत्रों (उजियारपुर, समस्तीपुर, दरभंगा, बेगूसराय, मुंगेर) में मतदान भी होगा। मोदी की जनसभाएं उनके अगल-बगल वाले क्षेत्रों में होनी हैं। पिछले तीन चरणों में भी वे कुछ इसी तरह छह जनसभाएं किए हैं, लेकिन पटना में रोड-शो और रात्रि-विश्राम का यह पहला अवसर है। ताबड़तोड़ जनसभाओं के साथ बिहार में रोड-शो करने वाले मोदी पहले प्रधानमंत्री होंगे। पटना के रोड-शो का असर तो वैसे पूरे बिहार में संभावित है, लेकिन असली जतन पटना साहिब और पाटलिपुत्र संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं का मन मोहने का है।

कठिन परीक्षा के दौर में होगी भाजपा
चौथे चरण के साथ ही 19 सीटों पर मतदान की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। इनमें से मात्र छह सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी हैं। तीन पर लोजपा, एक पर हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और शेष नौ सीटों पर जदयू के प्रत्याशी रहे। लंबे समय से प्रचार कर रहे नेताओं की थकान बढ़ी है और राजग में भाजपा की 11 सीटों पर अभी मतदान होना है। मतदाताओं की चुप्पी भी कम तकलीफदेह नहीं और आगे धरती के तपने का पूर्वानुमान भी है। कोई दो राय नहीं कि आगे भाजपा कठिन परीक्षा के दौर में होगी।दरअसल, देश-दुनिया को लोकतंत्र का ककहरा पढ़ाने वाले बिहार की अपनी राजनीति जातियों के मकड़जाल में उलझी हुई है। इस बार सामाजिक समीकरण को ध्यान में रख सीटों का बंटवारा हुआ और टिकट भी उसी अनुरूप बांटे गए, फिर भी कुछ समुदाय स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे। उनके बिदकने से चुनावी संभावना प्रभावित होगी।

खेल बिगाड़ने में लगे इक्का-दुक्का बागी
तीसरे चरण के मतदान के साथ उसकी आशंका बढ़ गई है। इक्का-दुक्का बागी भी खेल बिगाड़ने में लगे हैं। हालांकि, यह स्थिति दोतरफा (राजग और महागठबंधन) है, लेकिन "अबकी बार चार सौ पार" का लक्ष्य बिहार की 40 सीटों के बिना पूरा भी नहीं होने वाला। भाजपा की बेकरारी का यही मूल कारण है। बहरहाल मूल मुद्दों से भटक चुके चुनाव में पार उतरने के लिए एक आसरा धुव्रीकरण का बचता है। हिंदुओं और मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि दर के तुलनात्मक आंकड़ों के बहाने उसका प्रयास भी हो रहा, लेकिन इस संदर्भ में "काठ की हांडी बार-बार चूल्हे पर नहीं चढ़ती" वाली कहावत डरावनी लगती है। इन सबके बावजूद भाजपा नेताओं के तीखे हो चुके बोल-वचन को महागठबंधन की प्रतिक्रियाओं से शह मिल रही।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रोड-शो और अगली रैलियों से इसे और धारदार बनाने की जुगत होनी है। युवा वर्ग के साथ महिलाओं में रोड-शो का व्यामोह विशेष रूप से प्रभावी होता है। ये मोदी की स्व-घोषित चार जातियों (युवा, महिला, किसान, गरीब) में से हैं। इन दोनों वर्गों की एकजुटता से सामाजिक समीकरण में उलझी जीत की राह भरसक सुलझ सकती है। चुनावी रणनीतिकार समझ रहे हैं कि पटना के रोड-शो और छपरा की जनसभा का संदेश वाराणसी सहित पूर्वांचल तक पहुंचेगा, जिससे भाजपा की संभावनाओं को अतिरिक्त बल मिलेगा। हाजीपुर की जनसभा से मोदी अपने स्वघोषित "हनुमान" (चिराग पासवान) को पार उतारने का प्रयास करेंगे, जो असंतोष और भितरघात के थपेड़ों से भी जूझ रहे। यहां की जनसभा से नित्यानंद राय की आस भी जुड़ी है, जो उजियारपुर में जीत की हैट्रिक लगाने की जुगत में हैं, लेकिन जातीय गोलबंदी की मजबूत दीवार उनकी राह में अवरोधक-जैसी है। मुजफ्फरपुर की गूंज समस्तीपुर और दरभंगा तक सुनी जाती है। चौथे चरण में उजियारपुर से भी अधिक रोचक संघर्ष समस्तीपुर का है।

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