जयपुर.
राजस्थान हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में यह अभिनिर्धारित किया कि सरकार का यह दायित्व है कि वह कर्मचारी की पदोन्नति में जानबूझकर बाधक नहीं बने। दो याचिकाओं को मंजूर करते हुए कोर्ट ने राज्य सरकार और राजस्थान चिकित्सा शिक्षा समिति को निर्देश दिए कि भूतलक्षी प्रभाव से पदोन्नति रिक्तियां घोषित कर याचिकाकर्ताओं को पूर्व तिथि से पदोन्नति, वरिष्ठता और नोशनल परिलाभ दिए जाएं।
न्यायाधीश अरुण मोंगा की एकल पीठ में याचिकाकर्ता डॉ. रीना जैन एवं अन्य की ओर से डेमोस्ट्रेटर से सहायक प्रोफेसर तथा अन्य याचिकाकर्ताओं ने सहा. प्रोफेसर ने सह प्रोफेसर पद पर पदोन्नति की रिक्तियां घोषित नहीं किए जाने को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस करते हुए अधिवक्ता अनिल भंडारी, समीर श्रीमाली और दिनेश चौधरी ने कहा कि राज्य सरकार ने वर्ष 2017 में चिकित्सा समिति का गठन करते हुए राज्य में आठ जगह जिला अस्पतालों को मेडिकल कॉलेज में परिवर्तित किया और नियमों में 50 फीसदी पद पदोन्नति से भरे जाने का प्रावधान किया। इसके बावजूद लगातार आठ बार विज्ञापन जारी कर सीधी भर्ती ही की।
उन्होंने कहा कि भर्ती नियम के खंड 24 के तहत एक साल की सेवा के बाद डेमोस्ट्रेटर पदोन्नति के लिए पात्रता रखते हैं। एकल पीठ ने माना कि सभी चिकित्सकों की सेवाएं तीन साल से अधिक हो चुकी थी, लिहाजा वे सभी पदोन्नति के पात्र हैं।
राज्य चिकित्सा शिक्षा समिति को निर्देश दिए कि याचिका दायर करने के वर्ष 2021 से ही पदोन्नति रिक्तियां घोषित कर भूतलक्षी प्रभाव से जिस दिन से सीधी भर्तियां की गई है,उसी दिन से पदोन्नति के लाभ, सीधी भर्ती से नियुक्त चिकित्सकों से वरीयता और वरिष्ठता और नोशनल परिलाभ प्रदान किए जाएं।