नईदिल्ली. गुरुवार को श्राद्ध पक्ष के आखिरी दिन सर्वपितृ अमावस्या मनाई जा रही है। इसे आश्विन अमावस्या, बड़मावस और दर्श अमावस्या भी कहा जाता है। आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है। श्राद्ध पक्ष में एक सवाल जरूर उठता है कि यदि किसी परिवार में पुत्र नहीं है तो श्राद्ध और तर्पण कौन कर सकते है। शास्त्रों में इसका समाधान भी दिया गया है। शास्त्रों में लिखा गया है कि सबसे पहले तो पुत्र-पितृ और पात्र प्रमुख है। अर्थात् वह पुत्र पात्रता को प्राप्त होता है जो पितरों को तर्पण के द्वारा संतुष्ट करता है। उस पुत्र को पैतृक दोष रह ही नहीं सकता। मनुस्मृति और ब्रह्मवैवर्तपुराण जैसे प्रमुख शास्त्रों में यही बताया गया है कि पुत्र के अभाव में पौत्र और उसके अभाव में प्रपौत्र अधिकारी है।
पुत्र के अभाव में पत्नी भी श्राद्ध कर सकती है। इसी प्रकार पत्नी का श्राद्ध पति भी कर सकता है। यदि पिता के अनेक पुत्र हों तो ज्येष्ठ पुत्र को श्राद्ध करना चाहिए। यदि भाई अलग-अलग रहते हों तो वे सभी कर सकते हैं। किंतु संयुक्त रूप से एक ही श्राद्ध करना अच्छा है।