लखनऊ
उत्तर प्रदेश में होने वाला हर चुनाव में कांग्रेस के लिए अच्छे दिनों की उम्मीद और धुंधली कर जाती है। पिछले लोकसभा, विधानसभा और निकाय चुनाव के नतीजे इसकी बानगी हैं।
पार्टी हर बार बड़े-बड़े दावों के साथ चुनाव में उतरती है। और पिछली बार की तुलना में भी खराब प्रदर्शन के साथ सामने आती है।
जिस कांग्रेस पार्टी ने 1947 से 1989 के बीच लगभग चार दशक तक उत्तर प्रदेश पर राज किया, वह कांग्रेस अब लोकसभा की केवल एक सीट पर सिमट गई है। प्रदेश की 80 संसदीय सीटों में से 38 सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस आखिरी बार 40 साल पहले जीती थी। उल्लेखनीय है कि, 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस एकमात्र रायबरेली सीट जीत पाई थी। 403 सीटों वाली उत्तर प्रदेश विधानसभा में उसके केवल दो विधायक हैं।
38 सीटों पर 40 सालों से जीत का सूखा
उप्र में 38 संसदीय सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस ने 1984 के आम चुनाव में आखिरी जीत हासिल की थी। इन सीटों पर पिछले चार दशकों से कांग्रेस अपना करिश्मा दोहरा नहीं पाई। इन सीटों में सहारनपुर, कैराना, बिजनौर, पीलीभीत, अमरोहा, बुलंदशहर, संभल, हाथरस, आगरा, मैनपुरी, बदायूं,आंवला, हरदोई, इटावा, कन्नौज, मोहनलालगंज (सु0), लखनऊ, जालौन, हमीरपुर, बांदा, कैसरगंज, फूलपुर, इलाहाबाद, फतेहपुर, अम्बेडकर नगर, बस्ती, लालगंज, आजमगढ़, जौनपुर, मछलीशहर, गोरखपुर, देवरिया, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, मिर्जापुर और राबर्टसगंज शामिल हैं। एटा सीट पर कांग्रेस को अंतिम जीत 44 साल पहले 1980 के आम चुनाव में मिली थी।
उप्र की बाकी सीटों का हाल
उप्र में 2 सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस आखिरी बार 1989 में जीती थी। ये सीटें सीतापुर और घोसी हैं। मिश्रिख (सु0) सीट पर उसे अंतिम जीत 1991 के आम चुनाव में मिली थी। बागपत संसदीय सीट पर वह 1996 में अंतिम बात जीत का स्वाद चख पाई थी। मुजफ्फरनगर, रामपुर और मेरठ सीट पर उसकी अंतिम जीत 25 साल पहले 1999 में हुई थी। 2004 के चुनाव में 20 साल पहले आखिरी दफा अलीगढ़, मथुरा, शाहजहांपुर, बांसगांव और वाराणसी सीटों पर जीती थी। इसके बाद उसकी हार का सिलसिला जारी है।
20 सीटों पर 15 साल पहले मिली आखिरी जीत
मुरादाबाद, फिरोजाबाद, बरेली, खीरी, धौरहरा, उन्नाव, फर्रुखाबाद,कानपुर, अकबरपुर, बहराइच, झांसी, बाराबंकी, फैजाबाद, गोण्डा, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, श्रावस्ती, डुमरियागंज, महाराजगंज और कुशीनगर इन 20 सीटों पर कांग्रेस को अंतिम जीत 2009 के आम चुनाव में मिली थी। इस चुनाव में काग्रेस ने 18.25 फीसदी वोट हासिल कर कुल 21 सीटों पर कब्जा किया था। 1984 के आम चुनाव के बाद सीट जीतने के लिहाज से यह कांग्रेस का सर्वश्रेष्ठ अंतिम प्रदर्शन था। 2009 के आम चुनाव के बाद हुए आम चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत और सीटें दोनों जमीन पर आ गए।
2014 और 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस जमीन पर
2014 के आम चुनाव में देश और प्रदेश में विपक्ष मोदी की आंधी में उड़ गया। इस चुनाव में कांग्रेस ने रायबरेली और अमेठी की मात्र दो सीटें जीती। उसका वोट प्रतिशत गिरकर 7.53 रह गया।
वहीं 2019 के चुनाव में कांग्रेस एक सीट रायबरेली ही जीत सकी। रायबरेली से कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी उम्मीदवार थी। हालांकि गांधी परिवार की गढ़ माने जाने वाली अमेठी सीट से राहुल गांधी चुनाव हार गए। राहुल गांधी को भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने 50 हजार से ज्यादा मतों के अंतर से उनके गढ़ में हराया था। इस चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटकर 6.36 रह गया।
2009 में बनी नई संसदीय सीटों पर भी लचर प्रदर्शन
2009 में परिसीमन के बाद उप्र में नगीना (सु0), गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, धौरहरा, अकबरपुर, फतेहपुरसीकरी, कौशाम्बी, संतकबीर नगर, श्रावस्ती, कुशीनगर और भदोही कुल 11 संसदीय सीटें अस्तित्व में आई। 2009 में नई सीटों पर पहली बार आम चुनाव हुआ। इनमें से चार सीटों कुशीनगर, श्रावस्ती, धौरहरा और अकबरपुर पर कांग्रेस ने जीत हासिल की। इसके बाद 2014 और 2019 के चुनाव में भाजपा, सपा और बसपा इन सीटों पर जीती। कांग्रेस का दोबारा खाता नहीं खुला।
2024 के आम चुनाव में कांग्रेस
कांग्रेस उप्र में इस कदर कमजोर है कि सभी सीटों पर वो चुनाव तक नहीं लड़ पाती। 2014 में कांग्रेस-रालोद का गठबंधन था। 2019 में कांग्रेस अकेले मैदान में थी। इस चुनाव में वो सारी सीटों पर प्रत्याशी नहीं उतार सकी। कांग्रेस की उप्र में कमजोर हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2024 के आम चुनाव में वो सिर्फ 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वो भी सपा गठबंधन के सहारे। जबकि सपा जैसी क्षेत्रीय पार्टी 63 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।