सतना,भास्कर हिंदी न्यूज़/, मैहर में प्रतिवर्ष होने वाले ख्यातिलब्ध समारोह उस्ताद अलाउद्दीन खां समारोह के समापन पर सांस्कृतिक संध्या में कोलकाता के उस्ताद शाबिर खां, सुदीप चट्टोपध्याय एवं शिराज अली खां की तबला, बांसुरी सरोद तिगल बंदी की धूम रही। उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत समारोह के तीसरे और आखरी दिन विश्व विख्यात बाबा उस्ताद अलाउद्दीन साहब को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मदीना भवन और कार्यक्रम स्थल पर दीप प्रज्वलित की गई। आयोजन समिति द्वारा इस अवसर पर प्रस्तुति देने वाले कलाकारों का शाल श्रीफल से सम्मान किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत में मैहर वाद्यवृद के कलाकारों द्वारा “राग सिंदूरा झपताल मे निबदय“ की भव्य प्रस्तुति दी गई। इसके पश्चात दिल्ली से अनुपिया देवताले के द्वारा वायोलिन पर प्रस्तुति दी गई जो की दर्शकों को भावविभोर करने वाली रही। कार्यक्रम की तीसरी प्रस्तुति पंडित हरीश तिवारी द्वारा गायन की प्रस्तुति दी गई। अगली कड़ी में उस्ताद साविर खा, पंडित सुदीप चट्टोपाध्याय एवं शिराज अली खां कोलकाता के द्वारा तबला, बासुरी और सरोद तिगलबंदी ने समा को बांंधे रखा। समरोह के अंत में पंडित नवल किशोर मलिक नई दिल्ली ने ध्रुपद गायन किया गया और स्थानीय कलाकारों की प्रस्तुति के साथ समापन किया गया।
बाबा अलाउद्दीन खां ने की थी अद्भुत वाद्य यंत्रों की रचना
पद्म विभूषित बाबा उस्ताद अलाउद्दीन खां आज भारत में ही नही देश और दुनिया बहु प्रसिद्ध सरोद वादक थे। मैहर में मां शारदा की नगरी को अपने कर्म स्थली बनाते हुए बाबा अलाउद्दीन खां ने बंदूक की नाल से अद्भुत वाद्य यंत्र नल तरंग की रचना की थी। उनका बनाया मैहर बैण्ड आज भी देश दुनिया में मशहूर है। बाबा अलाउद्दीन खां को सन् 1954 में संगीत नाट्य अकादमी ने अपने सबसे बड़े सम्मान संगीत नाट्य अकादमी फैलोशिप से नवाजा। इसके पश्चात बाबा अलाउद्दीन खां को कला के क्षेत्र में सन् 1958 में पद्म भूषण और सन् 1971 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। बाबा के पुत्र मशहूर सरोद वादक अली अकबर खा और अन्नपूर्णा देवी के पिता, राजा हुसैन खां के चाचा थे। इसके अलावा बाबा पंडित रवि शंकर, निखिल बनर्जी, पन्नालाल घोस, बसंत राय, बहादुर राय जैसे सफल संगीत कारो के गुरु भी रहे। बाबा अपने सरल स्वभाव और कड़ी मेहनत से मशहूर हुये। अलाउद्दीन खां साहब का जन्म बंगाल के ब्राम्हनबरिया जिले के छोटे से कस्बे शिवपुर में सन् 1862 में हुआ था और उनकी 6 सितंबर 1972 मृत्यु हुई। उनके पिता का नाम सरदार हुसैन खां था। उनके बड़े भाई फकीर आफताबुद्दीन ने बाबा को संगीत से रूबरू करवाया। सन् 1950 के दशक में आल इंडिया रेडियो से प्रसारित बाबा की खास रिकार्डिंग ने देश और दुनिया में उन्हें प्रसिद्ध कर दिया।
अलाउद्दीन खां मैहर के महाराजा के यहां दरबारी संगीतकार बनाए गए। दरबारी रहते हुए बाबा ने कई राग विकसित करके बास सितार और बास सरोद आधुनिक वाद्ययंत्रों के साथ जोड़कर मैहर वाद्य वृन्द की स्थापना की। मैहर राज घराने में बाबा ने स्वयं अपने हाथो से सितार और सरोद के मेल से बैंजो सितार और बंदूक की नलियों से नल तरंग की रचना की जो की देश और दुनिया में सराहा गया है। प्रति वर्ष तीन दिवसीय उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत समारोह का आयोजन बड़े ही धूमधाम के साथ मैहर में किया जाता है। इस कार्यक्रम की मनमोहक धुन सुनकर संगीत प्रेमी खुद ब खुद खींचे चले आते है। इस अवसर पर बाबा के बंगले से लेकर मकबरे तक को सजाया जाता है।
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