जयपुर.
पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार में सातवां वेतनमान लागू करने के बाद सामने आई वेतन विसंगतियों को दूर करने के लिए डीसी सामंत की अध्यक्षता में नवंबर 2017 को कमेटी बनाई, इसके बाद 2018 में राजस्थान में गहलोत सरकार सत्ता में आ गई। कमेटी ने अगस्त 2019 में अपनी रिपोर्ट तत्कालीन गहलोत सरकार को सौंप दी। गहलोत सरकार ने इस कमेटी के उपर एक और कमेटी बना दी। इसमें पूर्व आईएएस खेमराज की अध्यक्षता में कर्मचारी वेतन विसंगति परीक्षण समिति का गठन किया गया था।
समिति ने एक बार फिर से कर्मचारी संगठनों को बातचीत के लिए बुलाया, फिर ज्ञापन लिए गए। वेतन विसंगति/वेतन सुधार के संबंध में प्रस्तुत ज्ञापनों सहित अन्य मांगों का परीक्षण किया गया। इस समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट दिनांक 30.12.2022 को राज्य सरकार को प्रस्तुत कर दी गई है। मामला सिर्फ यहीं तक नहीं है। बीते 30 साला में वेतन विसंगतियों को लेकर दर्जन भर से ज्यादा कमेटियां बनी जिनकी रिपोर्ट सरकार की टेबल से आगे नहीं जा पाई।
एक कमेटी रिपोर्ट देती है सरकार दूसरी बना देती है
वेतन विसंगतियों को दूर करने की मांग का परीक्षण किए जाने के नाम पर सरकार ने एक के बाद एक कमेटी बना ती रहती है। साल 2013 से 2018 के बीच रही वसुंधरा सरकार में ने दिसंबर 2014 में कमेटी बनाई। यह कमेटी उससे पिछली सरकार द्वारा बनाई गई कमेटी की ओर से किए गए वेतनमान संशोधनों का परीक्षण करने के लिए गठित हुई। साल 2008 से 2013 के बीच रही गहलोत सरकार में प्रमुख वित्त सचिव रहे गोविंद शर्मा की कमेटी ने सीधी भर्ती वाले कैडर्स की ग्रेड पे रिविजन करने को मंजूरी दी थी। इस कमेटी की रिपोर्ट को अगली वसुंधरा सरकार ने परीक्षण करने के लिए तीन आईएएस अफसरों की कमेटी बना दी। इस कमेटी ने 2017 में सरकार को अपनी सिफारिशें सौंपी जिनमें पिछली कमेटी की सिफारिशों पर ग्रेड पे रिविजन को गलत बताते हुए ग्रेड पे फिर से संशोधित करने के लिए कहा। कर्मचारियों ने इसका विरोध किया तो इन सरकार ने इन सिफारिशों का परीक्षण करने के लिए तीन मंत्रियों की एक कैबिनेट कमेटी बना दी। इसके बाद सरकार ही चली गई और कैबिनेट कमेटी की रिपोर्ट का क्या हुआ इसका कोई अता-पता ही नहीं लगा।