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काबुल में बाबर का मकबरा पहुंचे नेहरू, इंदिरा, राजीव और राहुल, लेकिन राम जन्मभूमि कभी नहीं गए

नई दिल्ली
 कांग्रेस पार्टी ने राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम का न्योता ठुकरा दिया। पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी को श्री राम जन्मभूमि तीर्थ न्यास की तरफ से न्योता मिला था। कांग्रेस के इस कदम की चौतरफा आलोचना हुई। यहां तक कि उसके कई नेताओं ने इसे हिंदू और सनातन विरोधी कदम बताते हुए पार्टी छोड़ दी। आज जब अयोध्या में पूरी दुनिया के रामभक्त उमड़ रहे हैं तो लोग याद दिला रहे हैं कि दरअसल गांधी परिवार का कोई सदस्य अयोध्या में राम जन्मभूमि के दर्शन करने कभी नहीं गया बल्कि मुगल आक्रांता बाबर के मकबरे के आगे झुकने लिए अफगानिस्तान जरूर पहुंच गए। भगवान राम से हमेशा दूरी बनाए रखने वाले गांधी परिवार की अब तक की पीढ़ियां राम जन्मभूमि को तहस-नहस कर मस्जिद बनाने वाले आक्रांता बाबर के मकबरे के आगे नतमस्तक हुईं।

नेहरू से राहुल तक, हर पीढ़ी ने बाबर की कब्र के आगे झुकाया माथा

देश के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में विज्ञान के प्रफेसर आनंद रंगनाथन ने सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट किया। उन्होंने कहा कि राम जन्मस्थान पर कभी नहीं जाने वाले नेहरू, इंदिरा, राजीव और राहुल बाबर के मकबरे के आगे सर झुका चुके हैं। राहुल गांधी को छोड़ दें तो गांधी परिवार के बाकी तीनों सदस्य भारत के प्रधानमंत्री रह चुके हैं, लेकिन उन्हें भारत की आत्मा जिनमें बसती है, उस राम से उनका कोई राग नहीं। लेकिन भारत की आत्मा को रौंदने वाले बाबर के प्रति ऐसा प्रेम कि हर पीढ़ी अफगानिस्तान पहुंच गई। इतना ही नहीं पिछले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी यही कर चुके हैं।

राम से दूरी, बाबर से प्यार!

नेहरू-गांधी परिवार और कांग्रेस का कहना है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, इसलिए धर्म के काम में सरकार को शामिल नहीं होना चाहिए। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संविधान की भावना के खिलाफ जाने का आरोप लगाते हैं। लेकिन सवाल है कि आखिर बाबर कौन था, उसके मकबरे पर जाने का क्या मतलब है? आनंद रंगनाथन बाबर का एक बयान कोट करते हैं जिससे पता चलता है कि बाबर कितना धार्मिक था या धर्मनिरपेक्ष। आनंद बाबर का बयान लिखते हैं, 'मैं इस्लाम के खातिर एक घुमक्कड़ बन गया और काफिरों और हिंदुओं से लड़ता रहा। मैंने इस्लाम के लिए शहीद होने तक का संकल्प ले रखा था; लेकिन अल्लाह का शुक्र है कि मैं गाजी (गैर-मुस्लिमों के खिलाफ युद्ध का विजेता) बन गया।' सोचिए, जो खुद को धर्मनिरपेक्ष बताते हुए धर्म के सार्वजनिक प्रदर्शन से दूरी बनाने का दंभ भरता हो, वह कभी बाबर के मकबरे पर जाएगा?

बाबर के मकबरे पर पहुंचते रहे पूर्व प्रधानमंत्री

लेकिन नेहरू ही नहीं, इंदिरा, राजीव और राहुल गांधी तक, गांधी परिवार की हरेक पीढ़ी कब्र में दफ्न आक्रांत बाबर के आगे सिर झुकाने में नहीं हिचकते, लेकिन राम मंदिर से दूरी बरतते रहे। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू 1959 में, उनकी पुत्री इंदिरा गांधी 1968 में, इंदिरा के पुत्र राजीव गांधी 1976 में तो राजीव के पुत्र राहुल गांधी 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ काबुल में बाबर के मकबरे पर गए।

दिग्गज कांग्रेसी और पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह ने अपनी पुस्तक 'हर्ट टु हर्ट' में इंदिरा गांधी के काबुल दौरे की चर्चा करते हैं। वो बाबर के मकबरे पर इंदिरा गांधी के साथ थे। वो लिखते हैं, 'भारत के प्रधानमंत्री वहां खड़े थे, सिर थोड़ा झुकाकर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे थे। मैं उससे कुछ फुट पीछे था। यह संजोने, स्मरण करने और याद रखने का क्षण था। उस क्षण सदियां विलीन और धुंधली होती प्रतीत हो रही थीं।' वो आगे लिखते हैं, 'एक मिनट के बाद वो पीछे हटीं और बोलीं, 'हमने इतिहास से अपना नाता तोड़ लिया है।'

कांग्रेसियों की सोच समझिए

कांग्रेसियों की सोच समझिए। नटवर सिंह बाबर के मकबरे पर पहुंच कर गदगद हैं। वो उस क्षण को स्मरणीय बता रहे हैं। उधर, इंदिरा गांधी यह दावा करके दुख जता रही हैं भारत ने अपने इतिहास से कट गया है। दरअसल यह इंदिरा ही नहीं पूरे गांधी परिवार और कांग्रेस की सोच का आधार ही यही है। यही कांग्रेस सरकार की नीतियों के सूत्र वाक्य रहे- आक्रांताओं का महिमामंडन और भारतीयता का खंडन। कई जानकार और विश्लेषक कहते भी हैं कि मुगलों और अंग्रेजों ने गुलाम भारत में हिंदुओं का जो अहित किया, वो आजादी के बाद कांग्रेस शासन में भी जारी रहा।

राम मंदिर के मामले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का ही मामला ले लीजिए। दशकों से सुप्रीम कोर्ट राम मंदिर के मुकदमे पर चुप रहा और जब तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने समयबद्ध सुनवाई का फैसला लिया तो कांग्रेस पार्टी उनके खिलाफ महाभियोग लाने की तैयार करने लगी। आखिरकार जस्टिस दीपक मिश्रा को चुप्पी साधनी पड़ी। फिर जस्टिस रंजन गोगोई देश के चीफ जस्टिस बने तब राम मंदिर केस की नियमित सुनवाई हुई और 9 नवंबर, 2019 को फैसला आया। ध्यान रहे कि जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ तभी एक महिला ने यौन उत्पीड़न का आरोप मढ़ दिया। क्या इसके पीछे भी कोई शक्ति थी?

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