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व्यथित किसान…!

लघु कथा…

दशहरा का त्यौहार हम किसान भाइयों ने अपने दिल के अंदर हलके फुल्के डर और माता शारदे से इस कामना के साथ मनाया की माँ इस बार की खेती में आपकी कृपा जरूर हो।
इस बार बहुत सारी जिम्मेदारियां है जिसका निर्वहन करना है…..बेटी की शादी और बेटे को कॉलेज का दाखिला और बूढी माँ की आँखों के मोतियाबिंद का इलाज।
इन सब जिम्मेदारियों के बाद याद आया की अभी तो उन्नत बीज और खाद का जल्दी इंतजाम करना है। खाद का पता जाकर सोसाइटी में किया तो साहब ने कहा अभी खाद नहीं आयी है अभी आने में एक हफ्ते बाकी है।

मैंने दोपहर का खाना खाया और दूसरी बेला में सोचा की चल के खेत देखता हूं की अभी यदि एक हफ्ते का इंतज़ार किया जा सकता है क्या ….क्योंकि खाद के लिए साहब ने अगले हफ्ते का बोला है।

खेत जाकर देखा तो मानो खेत बोल रहा हो की अभी ट्रैक्टर लेकर नहीं आये बोने के लिए…? मैंने उससे खाद वाले साहब की बात बताई तो उसने कहा क़ि एक हफ्ता बहुत देर हो जायेगी।

मन ही मन अपने आपसे लड़ते हुए मैं खेत से लौट रहा हूँ इस कश्मकश में क़ि यदि पत्नी अपने झुमके दे दे तो साहूकार के यहाँ गिरवी रखकर खाद बाजार से मोल ले आऊं…! लेकिन हिम्मत नहीं हो रही थी कहने को क्योंकि पिछली बार जब सोयाबीन का बीज लिया था तो कमर करधन साहूकार के यहाँ गिरवी रखी थी उसे अब तक वापस नहीं ला पाया था और सोयाबीन की खेती पानी में नष्ट हो गयी थी। अब किस मुह से झुमका मांगू समझ नहीं आता..?

शाम को पत्नी खाने के लिए बोलने आई …चलो खाना खा लो …..मैंने उदास भाव से कहा भूख नहीं है। वो तुरंत समझ गयी लगता है ये परेशान है, फिर पूछने लगी क़ि आप सोसायटी गए थे. साहब ने क्या कहा? खाद आ गयी…..निराशा भरी आवाज़ में मेरे मुंह से निकला नहीं…उसे समझते देर न लगी की ये इसी वजह से परेशान है.
पत्नी ने सांत्वना भरे लहजे में मुझसे फिर पूछा क़ि कब आएगी खाद ?…..मैंने कहा अगले हफ्ते…..एक असहाय साँस के साथ बोली फिर…!

मैं कैसे बोलता क़ि अपने झुमका दे दो गिरवी के लिए..!
पत्नी बोली चलो खाना खा लो भगवान कुछ जरूर इंतज़ाम करेंगे…..

सुबह साहूकार के यहाँ गया कि कुछ पैसे मिल जाते तो उन्होंने कहा कि जो कमर करधन रखी थी गिरवी वह डूब गयी क्योंकि तुमने व्याज का पैसा नहीं चुकाया। अब मैं अवाक् होकर वहा से निकला मन में बहुत उधेड़ बुन के साथ….

रास्ते में दर्जी मिल गया वह गर्मी में बच्चों के कपड़ो की सिलाई मांग बैठा….. दूंगा यह बोलकर मैं जल्दी में वहा से निकल लिया।
अभी कुछ दूर बढा ही था कि याद आया की पत्नी सब्जी के लिए और बेटा पेन और बेटी ने कपडे काटने वाली कैची मंगायी थी क्योंकि बेटी पड़ोस में कपड़े सिलने का काम सीख रही थी। जेब को आजमाया तो उसने सिर्फ कैंची लेने की इजाजत दी. क्योंकि कैंची बहुत जरुरी थी बेटी का काम रुक जाता…..

घर पहुंचते ही पत्नी ने पूछा की सब्जी और बेटा मेरी पेन ….मैंने बिना देर लगाये बोल दिया कि अरे ये तो मैं भूल ही गया … फिर बेटी पिताजी मेरी कैची?….मैंने कैंची निकाल कर उसे दी ….वह इतना खुश मानों बहुत अनमोल चीज मिल गयी….वह तुरंत कपड़े काटने में लग गयी।

खाना लेकर पत्नी आयी उदास भाव से मुझसे पूछने लगी कि साहूकार ने पैसे नहीं दिए क्या….उसे पता था कि यदि पैसे दिए होते तो सब्जी और बेटे की कलम जरुर आती।
मैंने उसी भाव में उत्तर दिया नहीं…..
फिर क्या करेंगे ….? मैंने बहुत हिम्मत जुटाकर झुमके के बारे में पूछा…..पत्नी का चेहरा गुस्से से लाल..!
लेकिन वह भी जानती थी की इसके सिवा कोई चारा भी नहीं है खेत को समय से बोने के लिए…….

अगले दिन सुबह-सुबह पत्नी अपने झुमके लेकर मेरे पास आई, मेरे हाथ काँप रहे थे लेने में.. उसने झुमके दिए और साथ में बोली इस बार मेरी करधन भी वापस लाना ….वह भुनभुनाते हुए चली गई …. पता नहीं ये (झुमके) वापस आएंगे की नहीं……मैं भी प्रतिज्ञा करते हुए की ये झुमके और नयी करधन पहली ही फसल में लाऊंगा।

अभी साहूकार की दुकान खुली भी न थी मैं उसकी दुकान में पहुँच गया…..
मुझे सुबह-सुबह साहूकार देखकर आँखे तरेर कर देखा और मन ही मन भुनभुनाने लगा…..मैं भी उससे क्यो डरता मेरे पास झुमके थे.मैं साहूकार से थोड़ा कड़ी आवाज़ में बोला लालाजी मुझे पैसे चाहिए मैं झुमके लाया हूँ।

लाला जी ने कुछ देर मेरे मुंह की तरफ देखा और फिर पूछा की कितना पैसे चाहिए… मैंने तपाक से कहा पांच हजार…. लाला जी ने पैसे तुरन्त निकाल कर दे दिए और फिर मैंने अपने जेब से झुमके निकाला और कपकपाते हाथों से लालाजी की तरफ बढ़ा दिया. लाला ने मुस्कराते हुए झुमके अपने हाथों में उछाला…. मूझे कुछ क्षणों के लिए लगा की कही गिर कर ख़राब न हो जाय मेरी पत्नी के झुमके, लालाजी मानो मेरा मन पढ़ लिया… वह तुरन्त तौलकर लिखा-पढ़ी करने लगा…..
मैंने लालाजी को चलते समय कहा कि लालाजी इसमें कोई बदमाशी मत करना मैं पहली फसल में ले जाऊँगा….

आज मैं खाद भी लाया, सब्जी और बेटे की कलम भी….
मेरी पत्नी के अलावा सब खुश थे……!

अगले दिन सुबह सुबह ट्रैक्टर वाले की आरजू मिन्नत करके मैं खेत पहुँचा, खेत भी आज बहुत खुश है …मैं भी ट्रैक्टर के पीछे -पीछे झाड़िया साफ कर रहा था…..

आज बुवाई हो चुकी थी मैं बहुत प्रसन्न था, पत्नी से बोला आज कुछ अच्छा खाना बनाओ… पत्नी झकझोरते हुए …घर में जवान बेटी बैठी है और आपको कुछ अच्छा खाना बनाओ, मानो वो मुझे याद दिला रही हो की शादी ढूढ़ते नहीं हो..!
मैंने भी तपाक से जवाब दिया …हाँ भाई मुझे भी चिंता है अभी तो बुवाई से खाली हुआ हूं तुमनें तो एक भी दिन आराम नहीं करने दिया……

शाम को मैं भी अपने कुछ मित्रों के पास बैठकर ठिठोली कर रहा था तभी लालन कक्का ने बताया कि मनोहर मिश्रा(करौंदी) का लड़का अभी फौज में भर्ती हुआ है, मेरे कान खड़े हो गए….फिर गहरी सांस लेकर मैंने लालन कक्का से बोला क्यों न अपनी राधा की शादी की बात वहा करे।

कुछ देर रूककर लालन कक्का बोले ….हाँ तुम बोल तो सही रहे हो लेकिन मनोहर दहेज़ बहुत लेगा।
मैं भी सीने में पत्थर रखकर बोला कितना लेगा…(बहुत आशा भाव से लालन कक्का की तरफ देखा) कब चले बात करने….
लालन कक्का बोले सोमवार का दिन अच्छा है तभी चलते हैं।

आज मैं घर मैं इस भाव में पहुंचा मानो मैंने अपनी राधा के लिए लड़का खोज लिया हो…..
सारी बात मैंने अपनी पत्नी को बताई तो वो ख़ुशी के साथ डर भी रही थी की कही ज्यादा दहेज़ की मांग न करे।
सोमवार की सुबह मैं स्नानकर पूजा वाले कमरे में जा ही रहा था कि माँ चौखट से टकराकर गिर गईं जिससे उसके सिर में चोट लग गयी…. मैं भी जल्दी से साइकिल निकाला और पट्टी कराकर घर लौटा…… रास्ते में यह सोंचा की इस बार की ठण्ड में मोतियाबिंद का ऑपरेशन करवा ही देता हूं……है सब चीज भगवान के हाथ।
फिर मैंने सुबह का कलेवा किया और बढ़िया नील किया हुआ खादी का कुर्ता निकाला और अपने आप से इठलाता हुआ लालन कक्का के यहाँ पहुँचा….

लालन कक्का इंतज़ार ही कर रहे थे फिर हम दोनों साइकिल में बैठकर चल दिए. रास्ते से एक किलो जलेबी खरीदी क्यूंकि ….बहुत दिनों बाद मनोहर मिश्रा के घऱ जा रहे थे…
गांव के बच्चे हमारी सायकिल के पीछे पीछे साइकिल के टायर को दौड़ा रहे थे….मानो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वो हमारी जलेबी खाने के लिए पीछा कर रहे हो।
मनोहर भाई के घर पहुँच कर चाय -पानी हुआ उसके बाद दोपहर का भोजन मानो मनोहर को हमारे आने का उद्देश्य पता था। काफी देर इधर-उधर की बात के बाद लालन कक्का ने आने का कारण जाहिर किया……
उसके बाद तो मनोहर ने तो मूछ में ताव देते हुए बताया कि कई जगह से शादी वाले आये लेकिन बात नहीं बनी…. अपने लड़के के कसीदे पढ़ रहा था। कुछ देर रूककर लालन कक्का ने कहा हमें कुछ आशा दीजिये।

मानो इशारे से मनोहर मिश्रा ने बताया कि अभी खुटहा से नरेश तिवारी आये थे एक लाख और एक मोटरसाइकिल देने के लिए बोले है। ……कुछ पल के लिए मैं अवाक् रह गया फिर सोंचा यदि नौकरी वाले लडके के साथ शादी करनी है तो दहेज़ तो देना पड़ेगा।

कुछ हिम्मत करके मैं मनोहर से बोला मेरी बेटी बी.ए पास कर चुकी है और सिलाई भी कर लेती है तो मनोहर की तरफ से मोटरसाइकिल की छूट मिल गयी।
हम भी एक लाख में शादी पक्की करके मनोहर मिश्र से इजाजत मांगकर कर साइकल में जोर का पैडल मारकर चल दिए……
लालन कक्का बोलने लगे चलो तुम्हारी ये भी जिम्मेदारी (बेटी की शादी) पूरी होती दिखाई दे रही है लेकिन मैं एक लाख का हिसाब लगा रहा था।

घर पहुँच कर पत्नी को बताया बहुत खुश हुई आज गर्म गर्म रोटियां घी के साथ मिर्ची की चटनी के साथ ऐसी लग रही जैसे अमृत। मैंने भी जी भर कर खाया जैसे बेटी की शादी कर चुका हूं लेकिन जब अगले पल एक लाख याद आया मानो सुन्दर स्वप्न टूट गया हो।

फिर भी मैं मर्द था हिम्मत रख कर खेत की तरफ गया। देखा की खेत बहुत बढ़िया हरियाली बिखेर रहा था जैसे मेरे सभी स्वप्नों को पूरा करने के लिए आतुर हो रहा है।

मैं भी खूब मेहनत करने का मन बना चुका था। आज की रात बहुत ठण्ड है खेत में पानी भी लगाना है मैं एक पल देरी किये बिना पानी लगाने पहुँच गया, ठण्ड बहुत है थोड़ी-थोड़ी देर में सोने जाने का मन होता है लेकिन जब बेटी की शादी, बेटा का कॉलेज और बूढी माँ का मोतियाबिंद याद आता है तब नींद उड़ जाती है।

बेटे के बोर्ड की परीक्षा आ गयी और वह हर दिन की परीक्षा को अच्छी बताता है तो मेरा डर बढ़ता जाता है कि अब ये भी कॉलेज में दाखिला लेगा।……पैसा कहां से आएगा लेकिन अगले पल मुझे मेरी लहलहाती फसल याद आती है………..सब कुछ हो जायेगा।

फसल भी कटने को आयी। मेरी फसल पूरे गांव में सबसे अच्छी है मन बहुत गदगद है……

सुबह-सुबह आसमान में घनघोर घटाये छायी है मैंने भगवान से दो दिनों की मोहलत मांगी, लेकिन भगवान मुझे किसान होने की सजा दे रहे थे ……
वर्षा से पूरी फसल नष्ट हो चुकी थी। मैं और मेरा पूरा परिवार फूट- फूट कर बहुत रोया ….क्या करते सबके सपने टूट चुके थे ।

कुछ दिनों बाद मुझे फिर सारी जिम्मेदारी(बेटी की शादी,बेटे का कॉलेज, माँ की आँखों का ऑपरेशन और पत्नी के झुमके और करधन) याद आयी मैं घर में यह कह कर चल दिया की शहर कमाने जा रहा हूं।

मुझे एक मेरा मित्र बताया था कि दिल्ली में एक किडनी के बदले पांच लाख मिल जायेंगे। मेरे मन में ये संतोष था कि एक किडनी से भी मैं कुछ दिन जिन्दा रह सकता हूं और अपनी जिम्मेदारी पूरी कर सकता हूँ।
फिर मैं उस दोस्त के साथ महाकौशल एक्सप्रेस से दिल्ली पहुंचा और जैसे मेरे मित्र ने बताया वैसे ही हुआ मुझे पांच लाख मिल गए। मैंने वही कुछ दिन जख्म ठीक होने का इंतज़ार किया और फिर पांच लाख के साथ घर आया।

पहले मैं पत्नी के झुमके और करधन लाया और फिर बेटी की धूमधाम से शादी की माँ के आँख का आपरेशन फिर बेटे का कॉलेज का दाखिला। सब एक एक करके मेरी जिम्मेदारी पूरी हुयी ।
और फिर ऊपर से बुलावा जल्दी आ गया ….दूसरी किडनी जल्दी खराब हो गयी।

पंडित योगेश कुमार गौतम

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