सतना, भास्कर हिंदी न्यूज़/ संस्कृत के विद्वान तथा भाषाविद् महामहोपाध्याय पद्मश्री भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी ‘वागीश शास्त्री (89) का देर रात निधन हो गया। वागीश शास्त्री के निधन की सूचना से संस्कृत जगत में शोक की लहर व्याप्त हो गई। पद्मश्री वागीश शास्त्री कई दिनों से बीमार चल रहे थे। वह संस्कृत व्याकरणविद्, भाषाविद्, तंत्र और योग के ज्ञाता थे। 2018 में भारत सरकार ने उन्हें साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में पद्मश्री से सम्मानित किया था। वागीश शास्त्री के निधन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान समेत कई नेताओं में शोक व्यक्त किया है।
उनके निधन पर भतीजी अल्पना दुबे, अजय दुबे, स्नेहलता त्रिपाठी, मनीष तिवारी,राजेश दुबे,दीपक मिश्रा,आनंद मिश्रा, निरंजना त्रिपाठी,राजीव मणि त्रिपाठी,कमलेश गुप्ता, सुधीर मिश्रा, प्रखर श्रीवास्तव, विपिन अरजरिया, आशीष ,विक्की दुबे,विपिन रॉय आदि जबकि सागर से ब्रजेश त्रिपाठी जिला प्रोग्राम अधिकारी आदि ने शोक व्यक्त किया है।
संस्कृत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले प्रो. वागीश शास्त्री को वर्ष 2018 में पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया गया था। उनका जन्म 24 जुलाई 1934 में मध्यप्रदेश के सागर जनपद के बिलइया ग्राम में हुआ था। उन्होंने 1959 में वाराणसी के टीकमणि संस्कृत महाविद्यालय में संस्कृत प्राध्यापक के रूप में अपने अध्यापकीय जीवन की शुरुआत की थी। इसके बाद वह संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में अनुसंधान संस्थान के निदेशक व प्रोफेसर के पद पर 1970 में नियुक्त हुए और 1996 तक विश्वविद्यालय में कार्यरत रहे। वागीश शास्त्री ने 1983 में बाग्योगचेतनापीठम नामक संस्था की स्थापना की थी।
इस संस्था के माध्यम से वह सरल विधि से बिना रटे पाणिनी व्याकरण का ज्ञान देते थे । प्रो. शास्त्री से ज्ञान अर्जन के लिए देश-विदेश से लोग उनके पास आते रहते थे। कई विदेशी शिष्य भी बने। उन्हें राष्ट्रपति द्वारा सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट सम्मान प्रदान किया जा चुका है। 2014 में प्रदेश सरकार की ओर से यशभारती सम्मान मिला था और 2014 में ही संस्कृत संस्थान ने विश्व भारती सम्मान दिया था। 2017 में दिल्ली संस्कृत अकादमी ने महर्षि वेद व्यास सम्मान से सम्मानित किया। इस क्रम में वर्ष 1993 में उन्हें अमेरिका ने सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट गोल्ड ऑफ आनर से सम्मानित किया गया था। शास्त्री की अब तक चार सौ से भी अधिक संस्कृत शोधलेख व 55 से अधिक मौलिक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुकी हैं। उनको मिले सम्मान से संस्कृत के विद्वानों में इस देव वाणी को नया आयाम मिलने की उम्मीद जगी है।