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कहानी: बरगद की छाया अब नही रही…!

   “साहित्य जगत”

पंडित योगेश गौतम

साइकिल की चैन चढ़ाते हुए श्याम जोर से चिल्लाए कान्हा जल्दी मेरा गमछा लाना अभी डॉक्टर को लेकर आता हूँ, और हाँ तुम चाचा को फोन कर दो कि दद्दी की तबियत बहुत खराब है! कान्हा अभी छठी कक्षा में पढ़ता है, घर का हिसाब किताब वही रखता है वही जो परिवार में पढ़ा लिखा है।। इधर श्याम उर्मलिया डॉक्टर को लेकर आते हुए चिल्लाये कि डॉक्टर साहब को बैठने के लिए मचिया लेकर आना, श्याम के साथ डॉक्टर देखकर गांव के कुछ बच्चे और रमेश भैया भी दौड़े-दौड़े आए..!
डॉक्टर साहब झोला रखते हुए, दद्दी (कान्हा के दादा जी) की नब्ज पकड़ी तो मुँह से आह निकली और बोले कि दद्दी अब इस दुनियाँ में नहीं रहे, यह बात सुनते ही श्याम बेहोश होकर गिर पड़े उन्हे इसकी उम्मीद न थी कि दद्दी उन्हे छोड़कर इतना जल्दी चले जायेंगे, अभी अम्मा के क्रिया कर्म का कर्ज पटा भी न पाया था और फिर से दुखों का पहाड़ टूट पड़ा तभी श्याम कान्हा से पूँछा कि क्या तुम चाचा को फोन लगाए हो क्योंकि उनको अंतिम आशा अपने भाई विनोद से थी जो दिल्ली शहर मे चौकीदार की नौकरी करता है।

क्या बोला चाचा…. श्याम प्रश्न भाव से कान्हा से पूँछा तो कान्हा बताया कि चाचा बोले है कि कल पगार बटेगी तो कल चाचा दिल्ली से चलेंगे……
अब श्याम के दिमाग मे यह प्रश्न घूमने लगा क्या परसो तक रुका जा सकता है दद्दी के अंतिम संस्कार के लिए तभी डॉक्टर साहब और रमेश ने कहा परसो तक देर हो जायेगी, लाश से बदबू आने लगेगी,
श्याम मन ही मन सोचने लगा कैसे बताऊँ इन लोगों को कि दद्दी के संस्कार के लिए उसके पास पैसे नहीं है, विनोद आयेगा तभी पैसे आयेंगे तो संस्कार का इंतज़ाम और तेरहवीं वगैरह हो पायेगी!!
श्याम इस उहा पोह में कुछ बोल नहीं पा रहा और सोंच रहा कि यदि विनोद को आज बुलाता हूँ तो उसके पास पैसे नहीं होंगे, यदि मैं उसके बिना संस्कार कर भी दिया कुछ उधार लेकर तो वो जिंदगी भर माफ नहीं करेगा!!

तभी कान्हा, श्याम को फोन पकड़ाया और श्याम रोते हुए विनोद को बताया कि हमारी बरगद की छाया अब नही रही… विनोद सब कुछ समझ गया……
उसे भी पता है यदि वह आज यहाँ से जाता है तो पैसे नही मिलेगे, उसके पहुंचने से ज्यादा जरूरी पैसें थे क्योंकि घर में पैसे बिल्कुल नहीं है कैसे दद्दी का कार्यक्रम होगा!
आज विनोद को समझ नहीं आ रहा था कि वह सही कर रहा है या गलत, फिर भी लोकलाज के डर से वह दिल्ली में रुकना सही समझा और भाई श्याम को बोला कि दद्दी का आप संस्कार करो यह बोलते हुए उसका गला रुंध गया!!

तभी गांव वाले इकठ्ठे हो चुके थे श्याम के घर और सभी उसको संस्कार का सामान लिखा रहे थे और वह इतना जल्दी हिसाब लगा रहा था कि उससे अच्छी गणित तो किसी गणितज्ञ की नहीं थी उस दिन!!

तभी शंभू काका कुछ सामान की छूट बताए तो श्याम ऐसे खुश हुआ जैसे कोई लॉटरी निकली हो, श्याम अपनी पत्नी राधा से बोला कि दद्दी का संस्कार करना पड़ेगा आज और विनोद परसो आयेगा कुछ अनाज या सोना चांदी है बेचने को, तभी राधा रोकर बोली अनाज तो शाम के लिए भी कम पड़ जायेगा पत्तल फाड़ने को और रही बात सोना चांदी कि तो विनोद जब दिल्ली गए थे तो मेरा मंगलसूत्र गिरवी रख आये थे किराए के लिए, विनोद से बात कर लीजिए किसके यहाँ गिरवी है उसी को बेंच दीजिए तो आज का इंतज़ाम हो सकता है, तभी दरवाजे से शंभू काका की आवाज़ आयी कि जल्दी चलो सामान लेने….. देर मत करो।

श्याम को भी पता है कि मंगलसूत्र बेचने बस से काम नहीं चलेगा तभी घर में विलाप ज्यादा बढ़ा पता चला कि श्याम की बहन रेखा आयी है और तेज विलाप कर रही है।
रेखा, श्याम और विनोद की इकलौती बहन है उसके पति बहित बड़े ज्योतिषाचार्य और पंडिताई का काम करते है लेकिन भाईयो को गाली देने के अलावा कुछ नहीं है उनके पास तभी श्याम बोला ….दीदी दो – तीन दिन के लिए पांच हजार की मदद कर दो, विनोद आयेगा तो वापस कर दूँगा, अभी बहुत जरूरी है दद्दी के संस्कार को।

पैसे देने तो दूर रेखा जोर जोर से गाली देने लगी पिता जी ने तुम लोगों के लिए क्या नही किया आज अनाथ जैसे पड़े है, श्याम भी चुप रहना ही ठीक समझा तभी शंभू काका की फिर आवाज़ आई क्यों इतना देर कर रहे हो!
श्याम के दिमाग में आया कि अभी कोई चुनाव भी नहीं है, पिछली बार जब अम्मा का संस्कार किया था तो चुनाव चल रहा था तो कुछ मदद चुनाव वालों से हो गयी थी।
वह मन मारकर शंभू काका के साथ बाजार गया पहले सोनी के यहाँ तो मंगलसूत्र बेचा दो हजार में, जो विनोद गिरवी रख गया था दिल्ली जाने से पहले!

सारा सामान रामप्रकाश गुप्ता के यहाँ लिया जब पैसे रामप्रकाश ने बताया तो श्याम के हाँथ कापने लगे पैसे आँगे बढ़ाने को क्योंकि श्याम गरीब जरूर था लेकिन स्वाभिमानी भी ग़रीबी से कम न थी!
रामप्रकाश बोला पैसे कम है तभी श्याम इधर उधर देखकर बोला भाई परसो दे जाऊँगा मेरा भाई आयेगा, रामप्रकाश भी नजरे गुरेर कर बोला पैसे नहीं थे तो पहले बताना था लेकिन साथ में शंभू काका की वजह से वह कुछ बोल नहीं पा रहा था! तभी दौड़ता हुआ कान्हा आया कि पापा …. फूफा जी आये है और बुआ जी बोली है कि बाजार से नाश्ता ले आओ नही तो फूफाजी को गैस बनने लगेगी क्योंकि अब तो घर में खाना संस्कार के बाद ही बनेगा।

तभी श्याम ने जेब आजमाया तो फूटी कौड़ी भी न थी लेकिन घर की इज्जत का सवाल था और वह भी इकलौते बहनोई का शंभू काका बोले अरे तुम घर चल लेकिन श्याम को पता था कि यह काम दद्दी के संस्कार से बड़ा है!

तब तीनों लोग किशन हलवाई की तरफ बढे शायद किशन को पता हो गया था कि दद्दी का निधन हो गया है और वह श्याम के साथ पढ़ता था और श्याम की बहुत इज्जत करता था वह दद्दी के बारे में पूँछा और फिर श्याम ने किशन को जलेबी और समोसा बांधने को बोला तो किशन, श्याम को देखता रह गया उसे क्या पता कि यह नाश्ता श्याम के जीजाजी के लिए जा रहा…. श्याम ने रून्धे गले से बोला पैसा परसो दूँगा…… किशन भी हाँ भाव में सिर हिलाया…… अभी घर पहुँचे भी न थे कि श्याम को याद आया कि दद्दी के हाथों से गौदान भी नही कराया सभी गांव के लोग और बहन क्या कहेगी, तभी श्याम शंभू काका से गौदान की इच्छा जाहिर किया तो शंभू काका बोले कि श्याम तुम बोल तो ठीक रहे हो लेकिन तुम्हारी गाय अभी पिछले महीने ही खत्म हुई है, गाय खरीदने के पैसे कहाँ से आयेंगे?
शंभू काका से श्याम प्रार्थना भाव से बोला काका आप रामजी से मुझे गाय दिलवा दो मैं परसो पैसे दे दूँगा, तब काका एक बड़ी गहरी सांस लेते हुए बोले श्याम तुम परसो किसका किसका पैसा दोगे और आँगे भी बहुत संस्कार है लेकिन श्याम संतोष भाव से कि परसो विनोद आ जायेगा और सब कुछ ठीक हो जायेगा!!

शंभू काका घर पहुंचकर रामजी से बोले कि रामजी तुम अपनी गाय ले आओ उसका गौदान करना है, रामजी प्रतिउत्तर भाव में काका मेरी गाय तो अभी दूध देती है लेकिन आप बोलते है तो मैं दे देता हूँ लेकिन पैसा लूँगा पूरे दो सौ, श्याम कुछ बोलता इसके पहले शंभू काका बोले ठीक है उन्हे भी पता था कि गाय उधार लेना है तो मोल भाव नहीं होगा!
घर पहुँचे तो जीजा जी ने सारा सामान देखा तो चंदन की लकड़ी की कमी बताया, यह चंदन की लकड़ी की छूट शंभू काका ने दी थी तो श्याम, शंभू काका का चेहरा देखने लगा…… शंभू काका कुछ बोलते तो रेखा दीदी की आवाज़ आयी कि दद्दी के लिए अब चंदन की लकड़ी भी नसीब नहीं है, कैसे ब्राह्मण हो तुम लोग?

बात बिगड़ते देख शंभू काका ने श्याम को अपने जेब से पचास रुपए निकाल कर दिए कि जल्दी साइकिल से चंदन कि लकड़ी ले आओ नहीं तो उन्हे खुद जाना पड़ेगा श्याम के साथ उधार दिलाने क्योंकि उन्हे पता था श्याम के पास फूटी कौड़ी भी न थी!!

सभी गांव वाले इकठ्ठा हो चुके थे दद्दी की अंतिम यात्रा में शामिल होने को तभी बड़े बड़े कदम से चलता हुआ एक हाथ में कुछ कपड़ो की पन्नी लेकर एक बूढ़ा व्यक्ति चला आ रहा था जैसे श्याम ने उसे देखा तो लगा कोई छत जो सिर से हट गई थी फिर वापस आ गयी, अभी तक श्याम दद्दी के मरने पर रोया भी न था लेकिन कल्लू मामा को देखने के बाद वह अपने आँसू रोक न सका और कल्लू मामा से लिपट गया, कल्लू मामा भी श्याम को धीरज बधाते हुए बोले अब परेशान मत हो…. मैं आ गया हूँ।
श्याम को अब दद्दी वाली छत नजर आ रही थी कल्लू मामा को देखकर, तभी कल्लू मामा ने श्याम से पूँछा विनोद कहाँ है दिख नहीं रहा ?

श्याम गहरी सांस लेते हुए वह दिल्ली में है कल चलेगा जैसे ही पगार पा जायेगा, अरे श्याम तुम उसे आज चलने को नहीं बोले ? तब मौके को समझते हुए शंभू काका बोले अंतिम संस्कार में तो विनोद पहुँच नहीं पाता क्योंकि कल पहुंचता तो पैसे का नुकसान फिर क्यों करे संस्कार के बाद चाहे कल आए या परसों क्या फर्क पड़ता! शंभू काका की बात कल्लू मामा समझ चुके थे तभी कल्लू मामा कुर्ता उतारा और पैसे निकाल कर श्याम के हाथ में जैसे ही रखे श्याम को कुछ देर तक दद्दी की मौत भूल गयी क्योंकि सुबह से सभी लोंगो से पैसे के लिए श्याम समझौता कर रहा था, श्याम मामा से शांत भाव से मामा ये पैसे ……तभी कल्लू मामा, हा ये पैसे तुम्हारे लिए ही लाया हूँ संस्कार के लिए।
कुछ क्षण के लिए लगा कि कैसे विनोद को बता दूँ कि तुम जल्दी आ जाओ अब पगार का इंतज़ार मत करो, रेखा जीजी को कैसे बताऊ कि संस्कार के लिए मेरे पास पैसे आ गए और रामप्रकाश गुप्ता के पैसे कितना जल्दी दे आऊँ और रामजी से कैसे बोलूँ कि मैं तुम्हारे गाय के दो सौ रुपए नहीं दूंगा क्योंकि मुझे पैसे अब नकद देना है! तभी शंभू काका ने आवाज़ लगाया कि समय निकल रहा है संस्कार का अब देर करना ठीक नही और श्याम भी संतोष भाव से संस्कार के लिए चल दिया क्योंकि अब उसके पास संस्कार के पैसे थे!!

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