India Pak Kashmir Issue:newdelhi/ 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35-ए हटाकर विशेष राज्य का दर्जा वापस ले लिया गया। किंतु इस ऐतिहासिक निर्णय के पहले कई दशक ऐसे बीते जब कश्मीर की आड़ लेकर पाकिस्तान भारत की पीठ पर खंजर घोंपता रहा। दोनों ही देशों में कश्मीर मसला सुलझाने को लेकर कई बार बातें हुईं, दौरे हुए और शिखर वार्ताएं हुईं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। नतीजा नहीं निकलने देने के पीछे पाकिस्तान के नेतृत्वकर्ताओं के मन में अपने देश की जनता व सेना के नाराज होने का डर था। 70 के दशक के शुरुआती दौर में राष्ट्रपति रहे जुल्फिकार अली भुट्टो ने तो भारतीय प्रधानमंत्री और अधिकारियों से बातचीत में गुपचुप स्वीकारा था कि ‘मैं तो चाहता हूं कुछ ठोस बात हो, कश्मीर मामले का हल निकले, लेकिन कोई भी बात करूंगा तो मेरा देश उबल पड़ेगा। यूं समझिए कि कश्मीर मामले पर आपने कोई बात की तो मेरी पीठ दीवार की तरफ है। न मैंने कुछ सुना है, न आपने कुछ कहा है।
किस्सा सन् 1971-72 का है। तब भारत में इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और पाकिस्तान में जुल्फिकार अली भुट्टो राष्ट्रपति। 1971 की जंग में पाकिस्तान बुरी तरह हारा था और इसके अगले वर्ष दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक ‘शिमला समझौता” हुआ। इसमें पाकिस्तान के बंदी सैनिक छोड़े जाने, बांग्लादेश मुक्ति के दौरान भारत के कब्जे में आ गई पाकिस्तान की 5600 वर्गमील जमीन लौटाने जैसे समझौते हुए, लेकिन कश्मीर को लेकर कोई बात नहीं हुई। दरअसल, भारतीय पक्ष ने जब तय एजेंडे के तहत कश्मीर पर बात शुरू की तो जुल्फिकार अली भुट्टो अनमने हो गए। उन्हें डर था कि कश्मीर पर वे कुछ भी बात करेंगे तो उनके देश में यह संकेत जाएगा कि वे ‘शिमला में कश्मीर को भारत के हाथों बेच आए हैं।” ऐसे में अपने ही भय से भयभीत भुट्टो कुछ ठोस नहीं कर पाए और कश्मीर मसले को सुलझाने के उस ऐतिहासिक मौके को गंवा बैठे। हालांकि दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि भारतीय खेमे ने भी तब अपनी स्थिति काफी मजबूत होने के बावजूद भुट्टो पर अधिक दबाव नहीं बनाया था।
(वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैय्यर लिखित ‘एक जिंदगी काफी नहीं” से साभार)