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‘गणतंत्र’ दिवस को सार्थक करने के लिए ‘संदेश’ और ‘संकेत’ दोनों समझें

 विशेष सम्पादकीय

नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125 वीं जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘नेताजी’ की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण कर इस बात के संकेत दिये हैं कि

               ऋषि पंडित
           (प्रधान संपादक)

देश के लिए त्याग, तपस्या और अपनी जान न्योछावर करने वाली महान विभूतियों का ‘गौरवशाली इतिहास’ सुरक्षित और संरक्षित करना होगा तभी हमारी आने वाली पीढ़ी का भविष्य उज्जवल होगा और वे देश का भार अपने कंधों पर उठाने में सक्षम होंगे। आज देश अपना 73वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है। यह उन्हीं क्रांतिकारी,अहिंसावादी विचारधारा के परिपोषक राष्ट्रवादियों की तपस्या और कुर्बानियों का प्रतिफल है। हम उत्सव मनाने के लिए तो तैयार हैं परंतु तमाम राजनीतिक दलों के नेता इन विभूतियों के त्याग को अपने-अपने चश्में से देख कर उनके नाम को भी अपनी ‘पार्टी के झंडे तले लाने और निकालने’ का काम करने लगी हैं। यह दुखद है, सियासत की ऐसी सोच और ऐसा रंग सभी के लिए घातक है। इसलिए जरूरी है कि प्रधानमंत्री ने जो किया उनके संदेश और संकेत के निहितार्थ को समझा जाये।

प्रधानमंत्री ने प्रतिमा का अनावरण करते हुए कहा था कि ‘देश अतीत की गलतियों को दुरुस्त करने की राह पर है।’ उनका मतलब आजादी के योद्धाओं की आजाद भारत में हुई उपेक्षा से था। इस क्रम में उन्होंने इंडिया    गेट पर नेताजी की भव्य मूर्ति स्थापित करने की घोषणा के साथ ही सरदार वल्लभभाई पटेल, बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर और बिरसा मुंडा जैसी विभूतियों की स्मृतियों को सम्मान देने के लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदमों का जिक्र किया।

देश को गुलामी से मुक्त कराने के लिए लाखों लोगों ने अपनी शहादत दी और इन्ही महापुरुषों की तपस्या का प्रतिफल है कि आज समूचा देश खुली आबो-हवा में अपना 73वां गणतंत्र समारोह मनाने के लिए विश्व के सामने पूरे गौरव के साथ सीना तान कर तैयार है। खास तौर पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की बात की जाए तो यह सच है कि आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को उस रूप में मान्यता नहीं मिल सकी, जैसी मिलनी चाहिए थी। देश की आजादी के लिए महात्मा गांधी के नेतृत्व में चली आंदोलन की अहिंसक विचारधारा तो हमेशा चर्चा में आती रही परंतु नेताजी और उनकी आजाद हिंद फौज की प्रभावी भूमिका काफी हद तक पृष्ठभूमि में रह गई। मगर इसके बावजूद देश के जनमानस में नेताजी का स्थान कम महत्वपूर्ण नहीं रहा। आज भी देशवासियों के मन में नेताजी के लिए वैसा ही आदर और सम्मान है जैसा महात्मा गांधी, पं. जवाहरलाल नेहरू और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के लिए है।
इन महान विभूतियों की आजादी के परिप्रेक्ष्य में ‘विचारधारायें’ भले ही अलग-अलग रही हों वावजूद इसके विभिन्न बिंदुओं पर असहमतियों के बावजूद आपसी तालमेल और परस्पर सम्मान की भावना हमेशा बनी रही। उन सबको पता था कि रास्तों को लेकर उनकी प्राथमिकताओं में भले अंतर हो, पर लक्ष्य सभी का एक है। वे सब भारत को एक स्वतंत्र, सम्मानित और संपन्न देश के रूप में देखना चाहते थे। इसलिए चाहे नेताजी हों या स्वतंत्रता संग्राम के अन्य सेनानी, उनके योगदान को रेखांकित करना, उनके लिए अलग-अलग तरह से सम्मान प्रदर्शित करना तो स्वाभाविक है, और सभी देशवासियों को इसके लिए गर्व करना चाहिए। हर कृतज्ञ राष्ट्र ऐसा करता है।

पर हर बुद्धिजीवी के मानस पटल पर टीस इस बात को लेकर है कि इन महान विभूतियों को भी समय-समय पर सियासी शतरंज का हिस्सा बना लिया जाता है। कमोबेश प्रत्येक राजनीतिक दल अपने वोट वैंक को मजबूत करने के लिए इस गौरवशाली राष्ट्र संपदा का समय-समय पर उपयोग करने लगे हैं और इनकी तपस्या, त्याग और मातृभूमि के प्रति समर्पण को अपनी सियासी इमारत को मजबूत करने के लिए जाने-अनजाने अपमानित करने की कुत्सित चालें चलने से भी गुरेज नहीं कर रहे। राजनीति में विचारधाराओं का टकराव कोई नई बात नहीं है परंतु यह टकराव जब किसी महान विभूति की गरिमा को ठेस पहुंचाने पर आमादा हो जाये यह देश के गौरवशाली इतिहास के लिए कतई अच्छा नहीं है।

नेताजी सुभाषचंद्र बोस की 125 वीं जयंती पर सियासी दलों और उनके नेताओं ने जिस तरह से क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिंद फौज के गौरवशाली इतिहास पर राजनीतिक जुमले उछाले वह निंदनीय और शर्मिंदा करने वाला है। अपना राजनीतिक हित साधने के लिए नेताजी की होलोग्राम प्रतिमा के अनावरण कार्यक्रम को भी ‘सियासत’ का हिस्सा बना डाला।

ऐसा अपराध करने वालों को यह भी सोचना चाहिए कि यदि देश के लिए जान न्योछावर करने वाली विभूतियों का वे इस तरह ‘उपयोग’ करते रहेंगे तो यह एक गलत और खतरनाक परंपरा को जन्म दे सकता है। ये स्वतंत्रता सेनानी देशवासियों की साझा विरासत का हिस्सा हैं। अगर किसी भी वजह से ऐसा संदेश जाता है कि कोई एक पक्ष किसी खास नेता के सहारे अपना वोट बैंक पक्का करना चाहता है तो दूसरी पार्टियां भी इस होड़ में कूद पड़ेंगी। देश का गौरवशाली इतिहास रहे वीरों और वीरांगनाओं के नाम का उपयोग ‘सियासी जमात’ जिस तरह अपनी ‘राजनीति की रेल’ को सरपट दौड़ाने की कोशिश के लिए कर रहे हैं उन्हें इस बात का भी इल्म नहीं है कि इस ढलान पर एक बार लुढ़क गए तो कहां जाकर रुकेंगे..!  इसलिए अब यह बेहद जरूरी है कि समय रहते इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जाये। लोकतंत्र की खिल्ली उड़ाती राजनीतिक पार्टियां जो ‘सत्यता’ को अलग-अलग तरीके से समझा रही है गलत को भी सही ठहरा रहे हैं वो इस भारतीय लोकतंत्र के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है। हमारे पड़ोसी दुश्मन देश यही तो चाहते हैं कि देश में येन-केन- प्रकारेण बिखराव हो और वे अपने नापाक मंसूबों को अंजाम दे सकें। यह बात हमारे देश के नेताओं को समझनी चाहिए कि यदि देश का गौरव ही सुरक्षित और सम्मानित नहीं रहेगा तो फिर बचेगा क्या..?

सच्चाई तो यह है कि ना नेता कभी इन मुद्दों को लेकर गंभीर हुए हैं और ना होंगे..! पर हम भारतवासी हैं, हमारी उम्मीदों पर आसमान टिका होता है। इसलिए उम्मीदें तो कभी खत्म नहीं होंगी, नेताओं में समझदारी की ‘उम्मीदों’ के साथ आप सभी देशवासियों को गणतंत्र दिवस की आत्मिक शुभकामनाएं।

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