Premchand ki kahaniyan : हिंदी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद के योगदान का कोई जोड़ नहीं है. उनके लिखे उपन्यास और कहानियों की देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के पाठकों के दिल में एक खास जगह है. मुंशी प्रेमचंद की लघुकथा (premchand ki kahani) साहित्य की बात करें, तो उन्होंने कई लघु कथाएं व कहानियां लिखी हैं. उन्होंने हिंदी साहित्य के खजाने को लगभग एक दर्जन उपन्यास और करीब 250 लघु-कथाओं से भरा है. वे अपनी रचनाओं में गांव के भी हैं और शहर के भी. स्त्री के भी हैं, तो पुरुष के भी, पुरातन भी हैं और आधुनिक भी, समस्याओं के रचनाकार हैं, तो सुधार के भी. कलम के सिपाही कहे जाने वाले मुंशी प्रेमचंद की इन पांच लघु कथाओं के माध्यम से आप उनकी लेखनी को गहराई से समझने का प्रयास कर सकते हैं.
लघु कथाएं
बंद दरवाजा
सूरज क्षितिज की गोद से निकला, बच्चा पालने से. वही स्निग्धता, वही लाली, वही खुमार, वही रोशनी.मैं बरामदे में बैठा था. बच्चे ने दरवाजे से झांका. मैंने मुस्कुराकर पुकारा. वह मेरी गोद में आकर बैठ गया.उसकी शरारतें शुरू हो गयीं. कभी कलम पर हाथ बढ़ाया, कभी कागज पर. मैंने गोद से उतार दिया. वह मेज का पाया पकड़े खड़ा रहा. घर में न गया. दरवाजा खुला हुआ था.
एक चिड़िया फुदकती हुई आयी और सामने के सहन में बैठ गयी. बच्चे के लिए मनोरंजन का यह नया सामान था. वह उसकी तरफ लपका. चिड़िया जरा भी न डरी. बच्चे ने समझा अब यह परदार खिलौना हाथ आ गया. बैठकर दोनों हाथों से चिड़िया को बुलाने लगा. चिड़िया उड़ गयी, निराश बच्चा रोने लगा. मगर अंदर के दरवाजे की तरफ ताका भी नहीं. दरवाजा खुला हुआ था.
गरम हलवे की मीठी पुकार आयी. बच्चे का चेहरा चाव से खिल उठा. खोंचेवाला सामने से गुजरा. बच्चे ने मेरी तरफ याचना की आंखों से देखा. ज्यों-ज्यों खोंचेवाला दूर होता गया, याचना की आंखें रोष में परिवर्तित होती गयीं. यहां तक कि जब मोड़ आ गया और खोंचेवाला आंख से ओझल हो गया तो रोष ने पुरजोर फरियाद की सूरत अख्तियार की. मगर मैं बाजार की चीजें बच्चों को नहीं खाने देता. बच्चे की फरियाद ने मुझ पर कोई असर न किया. मैं आगे की बात सोचकर और भी तन गया. कह नहीं सकता बच्चे ने अपनी मां की अदालत में अपील करने की जरूरत समझी या नहीं. आमतौर पर बच्चे ऐसे हालातों में मां से अपील करते हैं. शायद उसने कुछ देर के लिए अपील मुल्तवी कर दी हो. उसने दरवाजे की तरफ रुख न किया. दरवाजा खुला हुआ था.
मैंने आंसू पोंछने के ख्याल से अपना फाउंटेनपेन उसके हाथ में रख दिया. बच्चे को जैसे सारे जमाने की दौलत मिल गयी. उसकी सारी इंद्रियां इस नयी समस्या को हल करने में लग गयीं. एकाएक दरवाजा हवा से खुद-ब-खुद बंद हो गया. पट की आवाज बच्चे के कानों में आयी. उसने दरवाजे की तरफ देखा. उसकी वह व्यस्तता तत्क्षण लुप्त हो गयी. उसने फाउंटेनपेन को फेंक दिया और रोता हुआ दरवाजे की तरफ चला क्योंकि दरवाजा बंद हो गया था.
राष्ट्र के सेवक
राष्ट्र के सेवक ने कहा – देश की मुक्ति का एक ही उपाय है और वह है नीचों के साथ भाईचारे का सलूक, पतितों के साथ बराबरी का बर्ताव. दुनिया में सभी भाई हैं, कोई नीच नहीं, कोई ऊंच नहीं.
दुनिया ने जय-जयकार की – कितनी विशाल दृष्टि है, कितना भावुक हदय!
उसकी सुंदर लड़की इंदिरा ने सुना और चिंता के सागर में डूब गयी.
राष्ट्र के सेवक ने नीची जाति के नौजवान को गले लगाया.
दुनिया ने कहा- यह फरिश्ता है, पैगम्बर है, राष्ट्र की नैया का खेवैया है.
इंदिरा ने देखा और उसका चेहरा चमकने लगा.
राष्ट्र का सेवक नीची जाति के नौजवान को मंदिर में ले गया, देवता के दर्शन कराये और कहा – हमारा देवता गरीबी में है, जिल्लत में है, पस्ती में है.
दुनिया ने कहा- कैसे शुद्ध अन्त:करण का आदमी है! कैसा ज्ञानी!
इंदिरा ने देखा और मुस्कराई.
इंदिरा राष्ट्र के सेवक के पास जाकर बोली- श्रद्धेय पिताजी, मैं मोहन से ब्याह करना चाहती हूं.
राष्ट्र के सेवक ने प्यार की नजरों से देखकर पूछ- मोहन कौन है?
इंदिरा ने उत्साह भरे स्वर में कहा- मोहन वही नौजवान है, जिसे आपने गले लगाया, जिसे आप मंदिर में ले गये, जो सच्चा, बहादुर और नेक है.
राष्ट्र के सेवक ने प्रलय की आंखों से उसकी ओर देखा और मुंह फेर लिया.
देवी
रात भीग चुकी थी. मैं बरामदे में खड़ा था. सामने अमीनुद्दौला पार्क नींद में डूबा खड़ा था. सिर्फ एक औरत एक तकियादार बेंच पर बैठी हुई थी. पार्क के बाहर सड़क के किनारे एक फकीर खड़ा राहगीरों को दुआएं दे रहा था – खुदा और रसूल का वास्ता… राम और भगवान का वास्ता – इस अन्धे पर रहम करो.
सड़क पर मोटरों और सवारियों का तांता बन्द हो चुका था. इक्के-दुक्के आदमी नजर आ जाते थे. फकीर की आवाज जो पहले नक्कारखाने में तूती की आवाज थी, जब खुले मैदानों की बुलन्द पुकार हो रही थी. एकाएक वह औरत उठी और इधर-उधर चौकन्नी आंखों से देखकर फकीर के हाथ में कुछ रख दिया और फिर बहुत धीमे से कुछ कहकर एक तरफ चली गयी. फकीर के हाथ में कागज का एक टुकड़ा नजर आया जिसे वह बार-बार मल रहा था. क्या उस औरत ने यह कागज दिया है ?
यह क्या रहस्य है? उसको जानने के कुतूहल से अधीर होकर मैं नीचे आया और फकीर के पास जाकर खड़ा हो गया.
मेरी आहट आते ही फकीर ने उस कागज के पुर्जे को उंगलियों से दबाकर मुझे दिखाया और पूछा – बाबा, देखो यह क्या चीज है ?
मैंने देखा-दस रुपये का नोट था. बोला- दस रुपये का नोट है, कहां पाया ?
मैंने और कुछ न कहा. उस औरत की तरफ दौड़ा जो अब अन्धेरे में बस एक सपना बनकर रह गयी थी. वह कई गलियों में होती हुई एक टूटे-फूटे मकान के दरवाजे पर रुकी, ताला खोला और अन्दर चली गयी.
रात को कुछ पूछना ठीक न समझकर मैं लौट आया.
रात भर जी उसी तरफ लगा रहा. एकदम तड़के फिर मैं उस गली में जा पहुंचा. मालूम हुआ, वह एक अनाथ विधवा है. मैंने दरवाजे पर जाकर पुकारा- देवी, मैं तुम्हारे दर्शन करने आया हूं.
औरत बाहर निकल आयी – गरीबी और बेकसी की जिन्दा तस्वीर.
मैंने हिचकते हुए कहा- रात आपने फकीर…….
देवी ने बात काटते हुए कहा- ” अजी, वह क्या बात थी, मुझे वह नोट पड़ा मिल गया था, मेरे किस काम का था.
मैंने उस देवी के कदमों पर सिर झुका दिया.