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Mahakal Bhasmarti: 11 सितंबर शनिवार से ज्योतिर्लिंग महाकाल की भस्‍मारती के दर्शन कर सकेंगे श्रद्धालु

Mahakal Bhasmarti devotees will able to see: digi desk/BHN/उज्जैन। ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में शनिवार से भक्त भस्मारती के दर्शन कर सकेंगे। कोरोना के कारण मार्च 2020 से इस पर रोक लगी हुई थी। बीते दिनों मंदिर प्रबंध समिति ने बैठक कर रोक हटाने और दर्शनार्थियों को अनुमति देने का निर्णय लिया था। पहले दिन के लिए शुक्रवार दोपहर में ही बुकिंग फुल हो गई थी। इसमें देशभर के श्रद्धालुओं ने बुकिंग कराई है। आइये यह जानते हैं कि आखिर भगवान की इस आरती में क्या खास है, जिसके दर्शन के लिए भक्त लालायित रहते हैं।

महाकाल मंदिर के पं. महेश पुजारी बताते हैं कि शिव आदि और अनंत हैं…वे निराकार भी हैं और साकार भी…वे भस्म भी रमाते हैं और सोने चांदी के आभूषण भी धारण करते हैं। लौकिक जगत में भक्तों को सृजन से संहार तक का साक्षात्कार कराने के लिए शिव का यह कल्याणकारी रूप केवल ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में भस्मारती के दौरान ही दिखाई देता है।

दो घंटे की इस आरती में भगवान को जगाने से लेकर भस्म रमाने तक की अनेक विधि गोपनीय है। मान्यता है भगवान को जब भस्म रमाई जाती है तो वे दिगंबर स्वरूप में होते हैं। महिलाओं के लिए भगवान के इस रूप का दर्शन निषेध माना गया है। इसलिए जब भगवान को भस्म रमाई जाती है तो पुजारी महिलाओं को घूंघट डालने को कहते हैं। भस्म रमाने की विधि पूर्ण होने के बाद महिलाएं अपना घूंघट हटा लेती हैं।

एक दिन पहले मंदिर में तैयार होती है भस्मी

भगवान महाकाल को कभी भी चिता भस्म अर्पित नहीं की गई है। चिता भस्म अर्पित करने की किंवदंतियां निराधार हैं। महानिर्वाणी अखाड़े के साधु संत प्रतिदिन ओंकारेश्वर मंदिर के पृष्ठ भाग में स्थित भस्मी कक्ष में औषधीयुक्त गाय के गोबर से बने कंडों को जलाकर भस्म तैयार करते हैं। भस्मी को कपड़े में रखकर भगवान को अर्पित किया जाता है।

सिर्फ पुजारी रहते हैं मौजूद

भस्मारती के लिए प्रतिदिन तड़के चार बजे मंदिर के पट खोले जाते हैं। इससे पहले भगवान को जगाने तथा कर्पूर आरती तक की संपूर्ण विधि गोपनीय है। इस दौरान भस्मारती करने वाले पुजारी व उनके सहयोगी के अलावा कोई भी मौजूद नहीं रहता है। यह प्रक्रिया प्रतिदिन तड़के तीन बजकर 45 मिनट पर पुजारी के मंदिर पहुंचने के साथ शुरू हो जाती है। पुजारी मंदिर में पहुंचकर सबसे पहले कोटितीर्थ कुंड के जल से स्वयं को तथा पूजन सामग्री को शुद्ध करते हैं।

इसके बाद चांदी गेट पर विराजित भगवान के गण व द्वार पाल बाबा वीरभद्र को जल चढ़ाकर उनसे द्वार खोलने की आज्ञा लेते हैं। इसके बाद दरवाजे के एक हिस्से को धोकर शुद्ध किया जाता है। द्वार पर स्थित भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इसके बाद द्वार के सामने लगी घंटी को धोकर शुद्ध किया जाता है। पश्चात पुजारी घंटी बजाते हैं, इसका आशय यह है कि भगवान सोए हैं, तो जागृत हो जाएं कि पुजारी अब पट खोलने वाले हैं।

घंटी बजाने के बाद यह प्रक्रिया

घंटी बजाने के बाद प्रथम गेट का ताला खोलकर पुजारी भीतर प्रवेश करते हैं। यहां दीवार पर भगवान मानभद्र की मूर्ति है, फिर उनका अभिषेक किया जाता है। इसके बाद गर्भगृह के मुख्य द्वार की देहरी को जल से धोया जाता है। द्वार पर स्थित भगवान गणेश का अभिषेक पूजन करने के बाद भगवान महाकाल की जय जयकार करने के बाद द्वार खोल दिया जाता है।

इसके बाद गर्भगृह में माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय व नंदीजीजी का पंचामृत अभिषेक पूजन कर गंधाक्षत किया जाता है। इसके बाद भगवान महाकाल का अभिषेक पूजन कर एक पेड़े अथवा पंचामृत का भोग लगाकर कर्पूर आरती की जाती है। आरती संपन्ना होने के बाद पुजारी घंटी बजाते हैं, यही वह संकेत है कि भगवान जाग चुके हैं और अब भक्त आरती दर्शन के लिए अंदर आ सकते हैं।

भक्त चढ़ाते हैं जल

प्रवेश की स्वीकृति मिलने के बाद श्रद्धालु अंदर आकर भगवान को जल चढ़ाते हैं। इसे हरिओम का जल कहा जाता है। भक्तों के जल चढ़ाने का समय 15 से 20 मिनट तक रहता है। इसके बाद भगवान की महापूजा होती है। इसमें दूध, दही, शहद, घी, खांडसारी शकर से भगवान को स्नान कराया जाता है। इसके बाद मिक्स पंचामृत, गंधोदक, इत्र तथा फलों के रस से स्नान कराया जाता है।

इसके बाद भगवान को शुद्धजल से स्नान कराते हैं। शुद्धि स्नान के बाद भगवान को गंधाक्षत किया जाता है। इसके बाद नई यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण कराई जाती है। इसके बाद शिवलिंग के अग्रभाग में चंदन व भांग से छोटा श्रंगार किया जाता है। मुखाकृति पूर्ण होने के बाद भस्म रमाने की तैयारी शुरू हो जाती है और पुजारी कपड़े से मुख ढंक देते हैं।

वैदिक मंत्रों द्वारा रमाई जाती है भस्मी

भगवान महाकाल को महानिर्वाणी अखाड़े के साधु वैदिक मंत्रों से भस्म रमाते हैं। इन्हें पांच अघोर मंत्र भी कहा जाता है। ज्योतिर्लिंग के किस भाग में किस मंत्र से भस्म अर्पित की जाएगी इसका पूरा विधान गोपनीय है। यह विधि महानिर्वाणी अखाड़े के महंत,प्रतिनिधि व शिष्य को ही पता होती है। भस्म अर्पित करने के बाद भगवान को सोने चांदी के आभूषण धारण कराकर राजा रूप में श्र्ाृंगारित किया जाता है। इसके बाद भोग लगाकर आरती की जाती है।

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