“कोष: मूलो दण्डः” का यह नीति वाक्य आयकर विभाग ने जैसे आत्मसात कर लिया है और हाल यह है कि करदाता को प्रताड़ित, अपमानित और पीड़ित करने का कोई अवसर वह हाथ से जाने नहीं दे रहा है। आयकर विभाग में ई-फाइलिंग के आरंभ से अब तक भलीप्रकार से चलती आई वेब-साइट को जाने किस निजी लाभ की आकांक्षा से एकाएक विभाग ने बदलने का तय कर लिया और बेवजह रुपये 4242 करोड़ की भारी भरकम लागत से एक नया पोर्टल तैयार कराया गया।
मुसीबत यह है कि यह नया पोर्टल उस इंफ़ोसिस कंपनी को दिया गया जो पहले से ही जीएसटी के पोर्टल की नाकामी के कारण आलोचना का शिकार है और उसने अपनी नाकामी के सफर को जारी रखते हुए आम करदाता को ऐसे मुकाम पर ला पटका है जहां से उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है।
पद्मश्री नारायणमूर्ति और नंदन निलेकनी जैसे मूर्धन्य विद्वान देश में आर्थिक अस्थिरता के षड्यन्त्र के लिए यह करने का पाप करेंगे ऐसा तो हम नहीं सोच सकते लेकिन उनकी इस प्रकार की लगातार नाकामी और सरकार जैसे शक्तिशाली ग्राहक को स्तरहीन सेवा देने के पीछे क्या कारण होगा यह निश्चय ही शोध का विषय है। यहाँ यह भी महत्वपूर्ण है कि जहां पिछले पोर्टल पर आम करदाता को अपना पिछला 12 वर्षों का हिसाब किताब उपलब्ध था वहीं वर्तमान में केवल 3 वर्षों का ही डाटा उपलब्ध कराया जा रहा है। ई-गवर्नेंस के इस युग में इस प्रकार की उद्दंडता केवल नौकरशाहों की बदनीयती और हठधर्मिता के अलावा और क्या हो सकती है ?
देश का करदाता देश का अन्नदाता है और उसके श्रम स्वेद से अर्जित धन से वह देश के खर्चे उठाता है उसके साथ इस प्रकार का दुर्व्यवहार को “कर आतंकवाद और नौकरशाहों की तालिबानी सोच” के अलावा और क्या संज्ञा दी जा सकती है ? पिछले 6 वर्षों से पहले कंपनी कार्य हेतु एमसीए-21, फिर जीएसटी पोर्टल और अब इनकम टैक्स पोर्टल पर इस प्रकार के देश के समृद्धिदाताओं के कीमती समय और संसाधन के अपव्यय का कौन जिम्मेदार है यह रेखांकित करना बहुत जरूरी है। जागिए सरकार आपकी साख खतरे में है !