Thursday , April 25 2024
Breaking News

रोहित भाई..क्या कहूं, किससे कहूं, किसको कहूं…!

                                                                         

देश के एक बड़े खबरिया चैनल के वरिष्ठ पत्रकार और ख्यातिलब्ध एंकर रोहित सरदाना अब हमारे बीच नहीं रहे। मात्र 42 वर्ष की अल्प आयु में लोकप्रियता के ‘चरम’ को छूते हुए कोरोना के संक्रमण और ‘सिस्टम’ के ‘हार्टफेल’ का रोहित “अप्रत्यक्ष” तौर पर शिकार हो गये। ‘अप्रत्यक्ष’ इसलिए कह रहा हूं ताकि शायद किसी ख्यातिलब्ध पत्रकार को निजी और सरकारी के बीच ‘गठजोड़’ के ‘सिस्टम’ की खामी दिखाई दे जाये, जिसका शिकार अक्सर पत्रकार होते रहते हैं। रोहित का बड़ा नाम था इसलिए उनके लिए संवेदनाएं भी ‘सिस्टम’ के ‘बड़े’ लोगों की आईं..! वर्ना देश भर में आपदा व परिस्थितियों से जूझते हजारों पत्रकार अपनी जान गंवा देते हैं और उनकी कहीं गिनती भी नहीं होती है…! ‘सरकारी’ और ‘निजी सिस्टम’ के ‘गठजोड़’ के लिए सामान्य पत्रकार सिर्फ ‘चाइनीज उत्पाद’ की तरह है (कहा तो कुछ और भी जा सकता है परंतु कहीं कथित बुद्धिजीवियों के लिए वह शब्द पत्रकारिता की मर्यादा के विरुद्ध न लगने लगे, इसलिए फिलहाल मुझे यही उपमा उचित लगी..) जिसका मूल सिद्धांत ही ‘यूज एंड थ्रो’ है। पत्रकार अपने कलम की स्याही से जिसे पहचान दिलाता है बाद में वही उसे चाइनीज उत्पाद समझ लेता है चाहे वह ‘मीडिया मुगल’ हो या जनप्रतिनिधि..! पत्रकारिता जगत से जुड़े मेरे कई मित्र इस टिप्पणी को मेरी ‘व्यक्तिगत कुंठा’ का नाम दे सकते हैं, और देंगे भी। क्योंकि उनके पास इस संबंध में कहने के लिए तो बहुत कुछ है पर जुबां पर ताला लगा है और इस ताले की चाबी इसी ‘सिस्टम’ के पास होती है जो जब चाहे, जैसा चाहे पत्रकार को ‘यूज एंड थ्रो’ कर सकता है।

सरकार की नजर में तो पत्रकार सिर्फ उपयोग कर फेंकने वाली चीज हैं। मैं तो हैरान इस बात को लेकर हूँ कि जिस चैनल में रोहित सरदाना नेताओं को बुलाकर चैनल के मालिकों की ‘बादशाहत’ मीडिया जगत में बरकरार रखने का माध्यम बने रहे वही चैनल रोहित के निधन के बाद से स्क्रीन पर अपने एंकरों को आंसू बहाता दिखा कर संवेदनाओं के जरिये टीआरपी बढ़ाने में जुटा है। अगर चैनल के मालिकों में रोहित के खोने को लेकर जरा भी संवेदना होती तो वे कम से कम 12 घंटे तक विज्ञापनों का प्रसारण रोक देते…और अपने रोते हुए एंकरों को निर्देश देते कि सिस्टम (सरकार) पर सवाल खड़ा करें, क्यूंकि हर पत्रकार यह समझ रहा है कि यदि सिस्टम सही ट्रैक पर होता तो रोहित जैसे जुझारू पत्रकार शायद आज हमारे बीच से यूँ ना जाते…! देश भर में लाखों पत्रकार आज सड़क पर हैं…उन्हें रोजी-रोटी के लाले पड़ रहे हैं..कोरोना कि जंग में कितने पत्रकार अपने प्राण दे बैठे, परन्तु वाह रे.. नीति निर्धारकों के सेनापति…धिक्कार है आपके ‘सिस्टम’ को.. जो चौबिसों घंटे सातों दिन पत्रकारिता के प्रति समर्पित पत्रकारों के लिए कोई ठोस नीति नहीं बना पाया…! ‘सिस्टम’ के लिए बंगाल में ‘चुनाव’ महत्वपूर्ण था कोरोना नहीं। रोहित चैनल की तरफ से पश्चिम बंगाल का चुनाव कवर करने गये और कोविड-19 के पेशेंट बन कर वापस लौटे। उनके साथ जाने वाला कैमरा मैन भी कोरोना संक्रमित है। खबर तो यह भी है कि रोहित की पत्नी भी कोरोना की चपेट में है, परंतु धिक्कार है मीडिया हाउस के उन ‘मठाधीशों’ पर जिन्होंने सब कुछ जानते हुए एक बार भी यह सवाल नहीं उठाया कि सिस्टम के लिए जान से ज्यादा चुनाव क्यों जरूरी हो गया?

रोहित भाई आपके यूँ अनायास चले जाने का दु:ख हम सबको बहुत ज्यादा है पर हमारी संवेदनाये इन नीति- नियंताओं कि तरह ‘बेशर्म’ नहीं है जो शोर मचा कर, ढोल पीट कर ‘पब्लिक’ तक पहुंचे…! हमारी संवेदनाये तो दबे पांव आपकी आत्मा तक पहुंचेगी और इस दु:ख के गहन अन्धकार में आपके परिवार को संबल प्रदान करेगी..।

                         छोटे पत्रकारों की ओर से आपको भाव्यांजलि..
                                                                        -ऋषि पंडित

About rishi pandit

Check Also

मंहगाई डायन का दंश और दीपोत्सव..!

विशेष संपादकीय ऋषि पंडित (प्रधान संपादक ) चौतरफा मंहगाई की मार झेल रहे देशवासियों के …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *